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तूफ़ानों में थामते,जो सत की पतवार।
होती है भव से सदा,उनकी नैया पार॥
विपदा काले धारते,जो अंतस में धीर।
विजय वरण करते सदा,केवल वही सुधीर॥
तूफ़ानों से जो लड़े,हुए अंततः पार।
कोशिश की होती नहीं,कभी किसी युग हार॥
तम की छाती चीरकर,निकली किरण सुदीप।
जब मन में रोशन हुआ,आशाओं का दीप॥
जीवन में यदि चाहिए,सुख साधन का द्रव्य।
मनोयोग से कीजिए,बस अपना कर्तव्य॥
दंभ-द्वेष की भावना,क्रोध लोभ मद ताप।
ये अवगुण देते सदा,जीवन में संताप॥
पूर्ण हुए कारज सभी,चाहत के अनुसार।
करने से पहले किया,जिसने सोच विचार॥
मिला उन्हीं को देखिए,जीवन में सम्मान।
मर्यादाओं का रखा,सदा जिन्होनें मान॥
‘बंसल’ की विनती यही,छोड़ो ईर्ष्या-द्वेष।
मानवता से प्रीत ही, सबसे धर्म विशेष॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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