सन 2005 की वो हसी शाम थी।जिस दिन हमारी शादी कुर्सी से हुई आज सोलह वर्ष हो गये लेकिन विकास पुत्र का जन्म नही हुआ ।महिला, माता, बूढे, बुजुर्ग, की दर्द भरी कहानी जो विकास के खोखले दावो की पोल खोलता गंगा तट पर दफन हो गया । क्या कुर्सी के कुमारों एक भी विकास पुत्र पैदा कर पाएँगे?
वैसे कुमारों ने अपनी सेहत और अपने उठने बैठने के तौर तरीके में खूब विकास की है। देखा जाय तो ऊँचे ऊँचे बिल्डिंग बनी, व्यापारियो के ऋण माफ किए गये,म्यूजियम, यौवन की उन्नति के लिए जगह जगह रास लीलापार्क, ओवरब्रिज, पुल पुलिया, सडक, पानी, बिजली लेकिन सबसे जरूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पूरे साम्राज्य में ऐसी विखरी कि आज कुमारो को विनास पुरूष का तगमा लिए फिर रहे हैं। ऐसी शादी का क्या जो विगत सत्रह सालो में एक स्वास्थ्य रूपी स्वस्थ पुत्र पैदा नही कर पायी।रोते विलखते लोग परिजन दर दर ठोकर खाएँ और कुमारो भीडिओ फेसबुक और व्हाट एक के जरिए चंद चाटुकार से भोजन का स्वाद पूछकर विकास का वखान चैनल पर करते रहे ।शहर की राजधानी की नामी गिरामी अस्पताल में मरीज के साथ हैवानियत बालात्कार क्या नही ? मुजफ्फरपुर चमकी, चारा, अलकतरा सेल्टर होम,सृजन ऐसे कई कारनामें है जिसे अब सहने की आदत सी पड़ गयी है।
आज लिखते हुए हाथ कांपते है मगर इस दर्द विदारक घड़ी में कलम को ही हथियार बना लिया हूँ क्योंकि मैं एक वेवश अबला नारी हूँ। बिहार मायका है मेरा और इस मायके की यह दुर्दशा देखकर मैं विवश और रो पडी हूँ । ऐसे न जाने कितने अस्पताल है जिसके उद्घाटन तो हुए लेकिन न दवा है न डाक्टर न सफाई है न व्यवस्था सारी बस किताबो के पन्ने में दब गयी और योजनाओं की पैसा तिजोरियों में आखिर यह बंदरबांट का खेल खेलकर कैसे विकास पुत्र पैदा करेगे।
अब महीने दिन बाद बिहार पुनःबाढ की विभीषिका झेलेगा और उजड़ जाएगी कितने विकास पुत्र, मां के कोख में ही कोशी, कमला, गंडक, गंगा की लहरों में दम तोड़ देंगी। यह सिलसिला आज से नही सदियों से चली आ रही है।प्रत्येक साल दावे होते है लेकिन लाखो की तादाद में लोग प्रभावित होते है।फिर मुआवजे और रिलीफ फंड का ढिंढोरा पीटकर घडल्ले से तिजोरी भरे जाते हैं और विकास पुत्र को जन्म लेने से पहले ही मार दिया जाता है।
विकास पुत्र पैदा करने के सपने तो हर अबला नारी को दिखाया जाता है लेकिन ऐसी सरकारें या सिस्टम नहीं बना जो विकास पुत्र ही पैदा करे।हां घोटाले पुत्र की फौज खडी है जब घोटाला पुत्र की तादाद बढ़ जाय तो कोई विकासपुत्र की उम्मीद कैसे रखे पक्ष हो या विपक्ष सभी घोटाले में दबे होते है और उसमें दबती है मां की आशाएं बहन का सुहाग और फिर रोज मरता है विकास पुत्र ।
आशुतोष
पटना बिहार