हिन्दी की वैश्विक स्थिति और हकीक़त

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हाल ही में एक खबर आई थी कि,वैश्विक स्तर पर दुनिया की सर्वाधिक प्रभावशाली १२४ भाषाओं में हिन्दी का १०वां स्थान है। इसमें यदि हिन्दी की बोलियों और उर्दू को भी मिला दिया जाए तो यह स्थान आठवां हो जाएगा और इस तरह इस सूची में कुल ११३ भाषाएं रह जाएगीं। इस खबर से सभी हिन्दी प्रेमियों में उत्साह का माहौल है। भाषाओं की वैश्विक शक्ति का यह अनुमान आईएनएसईएडी के प्रतिष्ठित फेलो डॉ.कैई एल.चैन द्वारा मई २०१६ में तैयार किए गए `पावर लैंग्वेज इन्डेक्स` पर आधारित है।

इस इन्डेक्स का अध्ययन करने पर चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। इंडेक्स में हिन्दी की कई लोकप्रिय बोलियों को हिन्दी से अलग दर्शाया गया है। ११३ भाषाओं की इस सूची में हिन्दी की भोजपुरी,मगही,मारवाड़ी,दक्खिनी,ढूंढाड़ी,हरियाणवी बोलियों को अलग स्थान दिया गया है। इससे पहले विकीपीडिया और एथनोलॉग द्वारा जारी भाषाओं की सूची में भी हिन्दी को इसकी बोलियों से अलग दिखाया गया था,जिसका भारत में भारी विरोध भी हुआ था। `अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार हिन्दी को खंडित करके देखे जाने का सिलसिला रुक नहीं रहा है। यह जानबूझकर हिन्दी को कमजोर करके दर्शाने का षड़यंत्र है और ऐसी साजिशें हिन्दी की सेहत के लिए ठीक नहीं है। डॉ.चैन की भाषाओं की तालिका के अनुसार-यदि हिन्दी की सभी बालियों को शामिल कर लिया जाए तो हिन्दी को प्रथम भाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरा स्थान दिया गया है,परन्तु इंडेक्स में यह भाषा आठवें स्थान पर है। वहीं इंडेक्स में अंग्रेजी प्रथम स्थान पर है,जबकि अंग्रेजी को प्रथम भाषा के रूप में बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से चौथा स्थान प्राप्त है।`

पावर लैंग्वेज इंडेक्स में भाषाओं की प्रभावशीलता के क्रम निर्धारण में भाषाओं के भौगोलिक,आर्थिक,संचार,मीडिया व ज्ञान तथा कूटनीतिक प्रभाव को ध्यान में रखकर अध्ययन किया गया है। जिन पांच कारकों के आधार पर ये इंडेक्स तैयार किया गया है,उनमें भौगोलिक व आर्थिक प्रभावशीलता का स्थान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। यदि हिन्दी से उसकी उपर्युक्त बोलियों को निकाल दिया जाए तो इसका भौगोलिक क्षेत्र बहुत सीमित हो जाएगा। भौगोलिक कारक में संबंधित भाषा को बोलने वाले देश,भू-भाग और पर्यटकों के भाषाई  व्यवहार को सम्मिलित किया गया है। हिन्दी की लोकप्रिय बोलियों को उससे अलग दिखाने पर इन तीनों के आंकड़ों में निश्चित तौर पर कमी आएगी। भौगोलिक कारक के आधार पर हिन्दी को इस सूची में १०वां स्थान दिया गया है। डॉ.चैन के भाषाई गणना सूत्र का प्रयोग करते हुए,यदि हिन्दी और उसकी सभी बोलियों के भाषा-भाषियों की विशाल संख्या के अनुसार गणना की जाए तो यह स्थान निश्चित तौर पर शीर्ष पांच में आ जाएगा।

इन्डेक्स का दूसरा महत्वपूर्ण कारक आर्थिक प्रभावशीलता है। इसके अंतर्गत भाषा का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का अध्ययन किया गया है। इसमें हिन्दी को 12वां स्थान दिया गया है। इस इन्डेक्स को तैयार करने का तीसरा कारक है संचार,यानी लोगों की बातचीत में संबंधित भाषा का कितना इस्तेमाल हो रहा है। इंडेक्स का चौथा कारक अत्यंत महत्वपूर्ण है, मीडिया एवं ज्ञान के क्षेत्र में भाषा का इस्तेमाल। इसके अंतर्गत भाषा की इंटरनेट पर उपलब्धता,फिल्मों,विश्वविद्यालयों में पढ़ाई,भाषा में अकादमिक शोध ग्रंथों की उपलब्धता के आधार पर गणना की गई है। इसमें हिन्दी को द्वितीय स्थान प्राप्त हुआ है। विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्ययन और हिन्दी फिल्मों का इसमें महत्वपूर्ण योगदान है। हिन्दी की लोकप्रियता में बॉलीवुड का विशेष योगदान है। इंटरनेट पर हिन्दी सामग्री का अभी घोर अभाव है। जहां इंटरनेट पर अंग्रेजी सामग्री की उपलब्धता ९५ प्रतिशत तक है,वहीं हिन्दी की उपलब्धता मात्र ०.०४  प्रतिशत है। इस दिशा में हिन्दी को अभी लंबा रास्ता तय करना है। इस इन्डेक्स का पांचवा और अंतिम कारक है-कूटनीतिक स्तर पर भाषा का प्रयोग। इस सूची में कूटनीतिक स्तर पर केवल ९ भाषाओं (अंग्रेजी,मंदारिन,फ्रेंच,स्पेनिश,अरबी,रूसी,जर्मन,जापानी और पुर्तगाली) को प्रभावशाली माना गया है। हिन्दी सहित बाकी सभी १०४  भाषाओं को कूटनीतिक दृष्टि से एक समान स्थान(१०वां) दिया गया है,यानी कि सभी कम प्रभावशाली हैं। यहाँ एक बात उल्लेखनीय है, जब तक वैश्विक संस्थाओं में हिन्दी को स्थान नहीं दिया जाएगा,तब तक इसे कूटनीति की दृष्टि से कम प्रभावशाली भाषाओं में ही शामिल किया जाता रहेगा।

उपर्युक्त लैंग्वेज इंडेक्स को देखकर स्पष्ट हो जाता है कि,विश्वभर में अनेक स्तरों पर हिन्दी को कमजोर करके देखने की कोशिश की जा रही है। हिन्दी को देश के भीतर हिन्दी विरोधी ताकतों से तो नुकसान पहुंचाया ही जा रहा है, देश के बाहर भी तमाम साजिशें रची जा रही हैं। दुनिया भर में अंग्रेजी के बहुत सारे रूप प्रचलित हैं,फिर भी इस इंडेक्स में उन सभी को एक ही रूप मानकर गणना की गई है,परन्तु हिन्दी के साथ ऐसा नहीं किया गया है। वैसे भारत के भीतर भी तो हिन्दी की सहायक बोलियां एकजुट न होकर अपना स्वतंत्र अस्तित्व तलाश रही हैं और लगातार अपना संघर्ष तेज कर रही हैं। हिन्दी की बोलियों की इसी आपसी फूट का फायदा साम्राज्यवादी भाषाओं द्वारा उठाया जा रहा है। आज आवश्यकता है हिन्दी विरोधी इन गतिविधियों का डटकर विरोध किया जाए और इसके लिए सर्वप्रथम हमें हिन्दी की बोलियों की आपसी लड़ाई को बंद करना होगाl। सभी देशवासियों को अपने पद व हैसियत के अनुसार हिन्दी की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए निरंतर योगदान देना होगा। अंततः हमारी अपनी भाषा के प्रति जागरूक होने की जिम्मेदारी भी तो हमारी अपनी ही है।

                 #दिलीपकुमार सिंह

(वैश्विक स्तर पर विभिन्न भाषाओं की प्रभावशीलता से संबंधित `पावर लैंग्वेज इंडेक्स` नाम से जारी हालिया शोध के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी की वैश्विक स्थिति और हकीक़त से रूबरू कराता विश्लेषणात्मक लेख। आभार-वैश्विक हिन्दी सम्मेलन) 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।