श्रम के भाग्य निवेश,प्यारे भारत देश
सरल भाषा और ओजपूर्ण भावनाओं के अनूठे रचनाकार माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रेल 1889 में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था। पिता नंदलाल चतुर्वेदी गाँव के प्राइमेरी स्कूल में अध्यापक थे। प्रथमिक कक्षा के बाद घर पर रहकर इन्होंने बांग्ला संस्कृत गुजराती व अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। भारत के ख्यातिप्राप्त कवि लेखक और पत्रकार माखनलाल जी की रचनाएं अत्यंत लोकप्रिय हुई प्रभा और कर्मवीर जैसे प्रतिष्ठित पत्रों के सम्पादक रहते हुए ब्रिटिश शासन के खिलाप जोरदार प्रचार किया। नई पीढ़ी से आह्वान किया कि वे गुलामी की जंजीरों को तोड़कर बाहर आये।
इसके लिए अंग्रेजी सरकार ने उन्हें कोप भाजक भी बनाया। वे सच्चे देश प्रेमी थे। 1921 -22 के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेते हुए कई बार जेल भी गए।
इनकी कविताओं में देश प्रेम के साथ पकृति और प्रेम का भी चित्रण हुआ है।
उस समय के समाचार पत्र हिंदी केसरी ने सन 1908 में राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार विषय पर निबंध प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। माखनलाल जी उस समय खण्डवा में अध्यापक थे उन्होंने प्रतियोगिता में भाग लेकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। मासिक पत्रिका जो खण्डवा से प्रकाशित होती थी उस पत्रिका में ये सम्पादक रहे। 1913 में उन्होंने अध्यापक की नोकरी छोड़ दी और पत्रकारिता करने लगे। राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय हो गए कानपुर से गणेश शंकर विद्यार्थी ने प्रताप का सम्पादन व प्रकाशन आरम्भ किया। 1916 के लखनऊ में आयोजित कॉंग्रेस अधिवेशन में उनकी मुलाकात महात्मा गांधी मैथिली शरण गुप्त गणेश शंकर विद्यार्थी से हुई।
महात्मा गांधी द्वारा असहयोग आंदोलन 1920 में महाकोशल अंचल से पहली गिरफ्तारी उन्होंने दी।सन 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी उन्हें गिरफ़्तारी देने का प्रथम सम्मान मिला।
उनके महान कृतित्व के तीन आयाम पत्रकारिता -प्रभा कर्मवीर और प्रताप का सम्पादन। उनकी कविताएं नाटक निबन्ध और कहानियां। उनके अभिभाषण और व्याख्यान प्रमुख हैं।
1943 में उन्हें हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा देव पुरस्कार हिम किरीटिनी पर दिया गया। 1944 में साहित्य अकादमी द्वारा हिम तरंगिनि हेतु प्रथम पुरस्कार प्रदान किया। पुष्प की अभिलाषा सौर अमर राष्ट्र जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महा कवि के कृतित्व को सागर यूनिवर्सिटी ने 1949 में डी लिट् की मानद उपाधि से विभूषित किया । 1955 में इन्हें काव्य संग्रह हिम तरंगिनि हेतु साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया 1963 में भारत सरकार ने इन्हें पद्म भूषण से अलंकृत किया।1967 में राष्ट्रभाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध में माखनलाल जी ने यह अलंकरण लौटा दिया ।
इस महान कवि के नाम पर भोपाल के पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम रखा गया।
इनका कविता संग्रह हिम तरंगिनी व समर्पण है। इनकी प्रसिद्ध कविताएं दीप से दीप जले एक तुम हो मैं अपने से डरती हूँ सखी कैदी और कोकिला सिपाही वायु जवानी उपालम्भ तुम मन्द चलो घर मेरा है मुझे रोने दो तुम मिले बसन्त मनमाना जागना अपराध है भाई छेड़ो नहीं मुझे उठ महान प्यारे भारत देश गंगा की विदाई ये वृक्षों में उगे परिंदे क्या आकाश उतर आया आज नयन के बंगले में आदि हैं।
उनकी प्रसिद्ध कविता आज भी लाखों जुबानों पर है:-
चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ
चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ
चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ
चाह नहीं देवों के सिर पर चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ
मुझे तोड़ लेना वन माली उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ पर जावे वीर अनेक।
उनकी एक और कविता प्यारे भारत देश की ये पंक्तियां दिल को छू जाती है।
जपी तपी सन्यासी कॄषक कृष्ण रंग में डूबे
हम सब एक अनेक रूप में क्या उभरे क्या ऊबे
सजग एशिया की सीमा में रहता कैद नहीं
काले गौरे रंग बिरंगे हम में भेद नहीं
श्रम के भाग्य निवेश
प्यारे भारत देश
डॉ. राजेश कुमार शर्मा”पुरोहित”
झालावाड (राजस्थान)