बिराण माटी -हरियाणवी नाटक

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लेखक खान मनजीत भावड़िया मजीद

खान मनजीत भावड़िया मजीद कि तीसरी किताब “बिराण माट्टी” नाटक संग्रह के रूप में आया है बहुत ही अच्छा प्रयास किया इसमें नाटक है जो समाज में फैली हुई कुरितियां को दर्शाने का प्रयास किया है इसमें लोक-परंपराओं, लोक-विश्वासों तथा लोक-भावनाओं के जितने विविध रूप लोक-नाट्य में मिलते हैं, इसके अलावा नाटक चाहे वह किसी भी रुप में खेला जाता हो वह केवल लोगों का मनोरंजन ही नहीं करता बल्कि अपनी एक अमिट छाप छोड़ता है और लोगों के जीवन में तुरंत परिवर्तन लाता है,जितना जल्दी काम कोई कविता या कहानी नहीं करती वह काम नाटक असरदार तरीके से करता है और जबरदस्त अपील भी करता है जब नाटक खेला जाता है तो श्रोता उसमें अपनी जिंदगी से जुड़े हुए रोल देखते हैं तो बहुत जल्दी असर करता है, मनजीत भावड़िया के नाटक हरियाणवी बोली में है और हरियाणा में नाटक खेलने वाले लोग एक नारा भी देते हैं “सुनो कि नाटक बोलता है,भेद सबके खोलता है।” खान मनजीत भावड़िया मजीद ने ये नाटक बिल्कुल ज़मीनी स्तर को सम्बोधित करते हुए लिखा है नाटक बड़ा आम आदमी इन नाटकों में पात्र हैं जो हरियाणा कि कल्चर भी है खेत खलिहानों का जिक्र महिलाओं, मजदूरों और किसानों के जीवन को अपने नाटकों में जगह
हरियाणवी नाटक मंडलियों का प्रत्येक सदस्य प्रायः प्रत्येक पात्र का कार्य कर सकता है। इससे हरियाणा की प्राचीन संस्कृति, उसकी सामाजिक स्थिति और लोक में मौजूद परम्पराओं व विश्वासों का पता चलता है. ‘सांग’व नाटक हरियाणवी संस्कृति का प्रतिबिंब है जिससे प्रदेश की प्राचीन संस्कृति से लेकर आधुनिक काल तक की संस्कृति का ज्ञान होता है।किसान का दर्द इनके नाटक में साफ़ झलकता है एक पात्र कहता है- “तूं टोल टैक्स नै रोवै अड़ै देश का भार सर ढो राख्या।”किसान की जिंदगी क़र्जे में ही गुजर जाती है ना फसल सही दाम में बिकती और ना सही खाद बीज मिलता।
रलदू- “हां भाई गोधू बात तो या ए है के किसान अर मजदूर कि खाल तो चारुं पासे पाड़े सै।” किसान और मजदूर कि हालात बहुत खस्ता है चारों और से मजदूर और किसान कि मार है।
एक गीत में –
“जेठ साढ कि गर्मी मै तेरा फूंस का ढारा रै,”
“कड़ टूट ली कमा-कमा कै मुश्कल होणा गुजारा रै।”

के करा किसान बेचारा जब उसके उत्पादन का दाम नी मिलदा।

किस पै करां भरोसा बेबै ना रह सुरक्षा घर म्ह।
महिलाओं की पीड़ा को व्यक्त किया गया है आज वर्तमान दौर में महिलाओं की सुरक्षा घर में भी नहीं है ज्यादातर लोग विश्वास करने के लायक नहीं है।

भरपाई-तू ठीक कहवै सै छोरी बदलम्ह देनी पड़ै है।
भ्रूण हत्या पर प्रहार करते हुए कवि ने कहां है कि आज लड़कों के रिश्ते नहीं होते बेटियों को पेट में ही मार दिया जाता है और और बदलें में रिस्ते होते हैं इसके बुरे परिणाम हमारे सामने हैं। लड़कियों की कमी होने के कारण बलात्कार रेप की घटनाएं बढ़ रही है रेप के ऊपर एक महिला पात्र अपनी पीड़ा कहती हैं
“करे रेप ना करे शादी नारी होगी भारी रै”।
बलात्कार करते हुए ना जाति देखते हैं ना धरू देखते हैं शादी समय सारी चीजें आड़े आ जाती है।
नाटक में नशे को बहुत बड़ी बीमारी बताते हुए एक पात्र के माध्यम से कहता है “नशे में मरे भी बहुत है”। नशे ने ना जाने कितने जानें ली है कितने घरों को बर्बाद किया है।
“नशे कि बिमारी तो सारे लाग्यी,घर गैल नशा करै सै” आज नशे का जहर हर घर तक पहुंचा दिया गया खासकर युवा पीढ़ी इसकी चपेट में हैं। बेरोजगार युवाओं को जानबूझकर नशे का आदी बनाया जा रहा है कवि ने अपने नाटक में बेरोजगारी जैसे विषय को नाटक में एक पात्र कहता है- “पढ़ा लिखा छोरा हान्डै सै गाल म्हे।”
“अनपढ़ कमावै रहै, रहै सदा याद म्ह ।।”
पढ़ा लिखा बेरोजगार नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खाते घूम रहा है अनपढ़ आदमी मेहनत मजदूरी करके अपना काम ठीक चला लेता है लेकिन पढ़ा लिखा युवा मजदूरी भी नहीं कर सकता और प्राइवेट कंपनियां उनके श्रम की चोरी करती है।
खान मनजीत भावड़िया मजीद ने पाखंडवाद पर भी छोट की है एक पात्र के जरिए कहता है- “आदमी के पसीने आवै, भगवान के ऊपर पंखा चाल्सै है।” कवि के कहने का भाव है कि पत्थर कि मूर्तियों पर पंखे चलते हैं और मेहनत करने वाला मज़दूर पसीने में रहता है पंखे कि ज़रुरत पत्थर को नहीं इंसान को।

सरदानंद राजली
सह सचिव ,जनवादी लेखक संघ हरियाणा

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