हे प्रभु उनको ज्ञान दो, जो ज्ञानी घनघोर।
स्वयं अल्पज्ञानी भले, रहलें अंतिम छोर।।
धन उनको प्रभु दीजिए, बने हुए धनवान।
मैं तो निर्धन ही भला, मिले पाव भर धान।।
जीभ चटोरे लोक को, देना छप्पन भोग।
हे प्रभु दे देना मुझे, देश भक्ति का रोग।।
तन बल ईश्वर दें उन्हे, जो बनते बलबीर।
हम तो बस सहते रहें, दे देना कुछ धीर।।
रूप उन्हें दे दीजिए, जो रँगते नित केश।
मुझे चाहिए साधना, और फकीरी वेश।।
होली के हुड़दंग दे, जो जन सर्व प्रवीण।
मुझे बचाना साँवरे, ढलती काया क्षीण।।
वक्ता उन्हें बनाइए, करते बक बक लोग।
मुझको दे दातार तो, मौन दीजिए योग।।
देना प्रभु सम्मान तो, जिनको है अभिमान।
सत्साहित्यिक छंद का, देना सृजन विधान।।
सात रंग देना उन्हे, जो मानस रंगीन।
शब्द शक्ति का ढंग दे, मुझको रंग विहीन।।
बुरा भले ही मानिए, या खुश होना आप।
शर्मा बाबू लाल को, रहे न मन संताप।।
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बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ
सिकंदरा, दौसा, राजस्थान