विषाणुओं के दूसरे दौर में प्राकृतिक उपाय होंगे कारगर

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वर्तमान में जीवन के अनेक आयाम सामने आने लगे हैं। दैहिक बीमारियों का दावानल एक बार फिर अपना प्रकोप दिखाने लगा है। अनेक देशों सहित हमारे राष्ट्र में भी निरंतर विस्तार ले रहा है। सभी सरकारें अपने स्तर पर फिर से तैयारियों में जुट गई हैं। सावधानियां बरतने की अनुशासनात्मक क्रियायें प्रारम्भ हो चुकीं हैं। धारा 144 से लेकर लाक डाउन की स्थितियां सामने आ रहीं हैं। वैज्ञानिक निदान खोजने के प्रयास हो रहे हैं। ऐसे में सुरक्षा के उपायों को ही कारगर बताया जा रहा है। वैज्ञानिक दवाइयों ने आयुर्वेद को दर किनार कर दिया है। प्राकृतिक चिकित्सा पध्दति को तो हाशिये पर ही पहुंचा दिया गया है। पंच तत्वों के संतुलन को स्थापित करके ही स्वस्थ लाभ लिया जा सकता है परन्तु इन तत्वों की ओर लोग भूल चुके हैं। कैमिकल वाली दवाइयां जहां एक ओर प्रतिकूल प्रभाव डालकर नई बीमारियों की भेंट दे रहीं हैं। टीके को सफल बताया जा रहा था, इसे अपनाने पर जोर दिया जाता रहा है परन्तु वह भी शतप्रतिशत कारगर नहीं है। अनेक पीडितों को इससे भी लाभ नहीं हो रहा है। प्राकृतिक चिकित्सा के सिध्दान्तों को एक बार फिर अपनाने की आवश्यकता महसूस होने लगी है। वायु, पानी, मिट्टी, ताप और आकाश तत्वों की जांच करके, उनकी कमी को पूरा करके स्वस्थ लाभ प्राप्त किया जा सकता है। महानगरों से लेकर गांवों तक फैल रही इस घातक बीमारी से बचाने हेतु प्राकृतिक जीवन को अंगीकार करने के साथ साथ शुध्दता की आवश्यकता होती हैं। आयुर्वेदिक औषधियों की शक्ति को पहचानने की आवश्यकता है, पंचतत्वों को संतुलित करने की जरूरत है और स्वीकारना होगा वास्तविक तत्वों के प्रभाव को। जीवन की विभीषिकाओं में यह दौर वर्तमान का सबसे कठिन दौर है। इसमें मानवीयता की पुनस्र्थपना होने लगी है। सहयोग की भावना बलवती होने लगी है। जाति, क्षेत्र और भाषा के विवाद समाप्त होने लगे हैं। जन कल्याण के कार्यों ने रुचियां बढने लगीं है। लोगों के हाथ खुलने लगे हैं। कोरोना के पहले दौर में जिस तरह से समाज ने समर्पण की भावना का तूफान दिखाया है उसने अनेक भागों में बंटी श्रेणियों को तत्काल मिटा दिया। पहले दौर में जिस तरह से अपने गंतव्य की ओर जाने वालों को मार्ग में समाज ने सहयोग ेकर, भोजन – निवास देकर और अभीष्ट तक पहुचाने हेतु वाहन सुविधायें भी प्रदान की थी। इस दूसरे दौर की दस्तक होने लगी है। सरकारी प्रयासों ने गति पकड ली है। लोग स्वयं के प्रयास करने लगे हैं। दूसरों को समझाइस देने लगे हैं। जागरूकता फैलाने हेतु संगठित योजनायें बनने लगीं है। वर्तमान में लोगों को प्राकृतिक चिकित्सा और आयुर्वेदिक औषधियों के गुणों को अंगीकार करने की महती आवश्यकता है ताकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता उच्च स्तर पर पहुंच सके। विषाणुओं के दूसरे दौर में प्राकृतिक उपाय होंगे कारगर, ऐसा अनेक शोधों में प्रमाणित हुआ है। अब आवश्यकता है तो केवल उसे स्वीकारने की, अंगीकार करने की और समाज हित में सक्रिय होने की। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

@ डा. रवीन्द्र अरजरिया

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