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नहीं छोड़ पाया अपने खिलौने
का मोह वो बालमन,
छीना-झपटी करते रहे घण्टों
एक-दूसरे के संग।
नजर मेरी टकटकी लगाए देख
रही थी उनके गुन,
सहसा एक किनारे जा खड़ा हुआ
वह शिशु खिलौने संग।
माँ बुलाती रही बाबू आ जाओ,
वह अनसुनी सी करता।
मोह था उसे अपने खिलौने संग,
बाँटना नहीं था दूजे संग।
माँ के समीप जाने पर और तेजी
लाता कदमों संग,
बहला-फुसलाकर माँ वापस लाती
करती बच्चों संग।
कुछ बिस्किट और फ्रूटी देती सबको
गिर न जाए कपड़ों पर
सीधे मुँह के अन्दर देती,
उत्साह दूना हुआ बच्चों का
खेल के संग।
सबकी नजरें बच्चों पर ही टिकती,
माँ को था मोह बच्चे से
व्यथित हुई चिन्तित हुई बोली अपनी
सखी से,घर जाकर
राई-नोन से नजर उतारना होगी।
सबकी नजरें है बच्चों संग।।
॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥॥—-शालिनी साहू, रायबरेली
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।
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