कुछ कर गुजरने की अब
किसानों ने ठान ली है।
और अपनी एकजुटता
देश को दिखा दी है।
किसानों का कोई जात
धर्म नहीं होता है।
उनका धर्म तो खेतों में
अन्न उगाना ही होता है।।
70 सालों में जो कुछ भी
देश के महापुरुषो ने बनाया था।
अब ये उनकी विरासत को
बेचे जा रहे है।
और फिर भी 70 सालों का
रोना आज भी रो रहे है।
और अपनी अकुशलता का दोष
उन ही लोगों पर लगा रहे हो।।
और देश की बहुमूल्य पूंजी को
क्यों बेचने पर तुले हो।।
खुदके खर्च खुद से
कम हो नहीं रहे है।
और मितव्ययता का
संदेश देश को दे रहे हो।
जबकि लाखो का वेतनभत्ता
सेवा के नाम पर ले रहे हो।
और देश की जनता का पैसा
खुद लूटे जा रहे हो।
बचा नहीं कुछ तो
किसानों को दाव पर लगा दिया।।
खेतों में अन्न उंगाकर भी
खुद किसान भूखा मरता है।
और देश की सुरक्षा में भी
किसान का ही बेटा मरता है।
फिर भी किसान और जवान
अपना फर्ज नहीं भूल रहे है।
और सरकार उन्हीं का
शोषण करने पर तुली है।।
बहुत खेल लिया जातपात
और धर्म के नाम का खेल।
जिसे लोग बहुत अच्छे से
अब समझ गये है।
पर इस बार पाला पड़ गया
देश के किसानों से।
और भूल गये अंहकार में की
सत्ता पर इन्होंने ही बैठाया था।।
अब यही तुम्हारे पीछे पड़ गए है
तो सत्ता से तुम्हें जाना पड़ेगा।
और अपनी करनी का फल
तुम्हें यही भोगना पड़ेगा।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)