जगा देता है माँ को,
प्रातःकाल के कर्तव्य का सूरज,
मध्यान्ह काल में तपता मन
काम के बोझ से,
संध्या में निढाल तन
अस्त होते सूर्य-सा।
सोते वक्त थकान
टूट-टूटकर गिरती है
अस्त-व्यस्त बिस्तर पर।
शयन कक्ष में रात को
दीवारों पर चिपका देती है
दिनभर के काम
और मन की खूंटियों पर
टांग देती है
कल की योजना,
जिसे सुबह होते ही उतार कर
पहन लेती है…..
और इस तरह माँ
बिना अवकाश लिये
प्यार, ममता और वात्सल्य
के बीज बो कर
परिवार के खेत को
सींचती है
स्वयं के त्याग
और थकी हुई मुस्कान से।।
परिचय:
नाम- नरेंद्रपाल जैन
साहित्यिक उपनाम-
वर्तमान पता- ऋषभदेव, उदयपुर
राज्य- राजस्थान
शहर- ऋषभदेव
शिक्षा- स्नातक
कार्यक्षेत्र- डूंगरपुर
विधा – काव्य की सभी विधाएं
प्रकाशन- मनोभाव, गागर, सुनो रहने दो, प्यासे नगमे, जीवन माला।
सम्मान- साहित्य रत्न, साहित्य भूषण, काव्य रत्न, भारतीय राजदूतावास काठमांडो नेपाल द्वारा सम्मान, शब्द साधना गौरव सम्मान आदि।
ब्लॉग-
अन्य उपलब्धियां- 1994 से हिंदी कवि सम्मेलनों में अनवरत भागीदारी, अब तक 200 से अधिक मंचों पर काव्य पाठ।
लेखन का उद्देश्य- हिंदी भाषा की सेवा।