नदियाँ खुद अपनी चाल से
रास्ते बना लेती है।
बड़े बड़े पहाड़ों को भी चीर
कर आगे निकल जाती है।
क्योंकि उन्हें अपनी आप
पर विश्वास होता है।
इसलिए उन्हें अदार से
पूजा जाता है।।
इरादे हो अगर नेक तो
मंजिले स्वंय रास्ता दिखती है।
और मुसाफिर को उसकी
मंजिल तक पहुंचाती है।
मत डर रास्तो के काँटों से
ये तेरा कुछ नहीं कर पाएंगे।
और तेरी मंजिल तुझे
निश्चित ही मिल जायेगी।।
अंधेरे घरों में कभी
रोशनी करके देखो।
उजड़े हुए बागो को
कभी आवाद करके देखो।
आशा की शायद कोई
किरण नजर आ जायेगी।
और मूरझाए हुये चेहरो पर
फिर से चमक दिख जायेगी।।
है अगर हौसले बुलन्द तो
पत्थरोमें से पानी निकल लेते है।
खंडर पड़े घरों को भी
रहने योग बना लेते है।
करनी और करने में
जो विश्वास रखता है।
जिंदगी को जीने का
खुद मार्ग बना लेते है।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन (मुंबई)