पांडव हारे खेल में,
द्रोपदि दाव लगाइ।
चीर हरण बेटी भयो,
मोहन लाज बचाइ।।
गंगा सुत भीषम भये,
भारत के इतिहास।
भीषण प्रण पूरण करी,
जीवन पाया त्रास।।
अंबा अंबे अंबिका,
तीनों बेटी खान।
बेटी त्यागन कारणे,
भीषम दीने प्राण।।
विदुराणी के छीलके,
खाये थे भगवान।
करमाबाई खीचड़ो,
भोग लगायो आन।।
राधा रुक्मणि द्रोपदी,
अरु कुंती को जान।
गंधारी अरु सुभदरा,
बेटी भई महान।।
तारावति हरिचंद की,
धरम कियो नहि भंग।
सत्य भाव के कारणे,
आपहि बिक गइ संग।।
भस्मासुर को वर दयो,
शिव पे संकट आन।
बेटी रुप धारण कियो
,तभी बचे थे प्राण।।
दमयंती की कथा सुनो,
नल की बनी सहाय।
जंगल में भटकत फिरी,
प्रीतम छोड़ा नाय।।
बेटी लीला कलावति,
मां बेटी सम्मान।
सत्यनरायण की कथा,
नारी का गुणगान।।
बेटी सावित्री भई,
यम को दिया हराय।
सत्यवान को सत्य से,
वापस लिया छुड़ाय।।
डॉ दशरथ मसानिया
आगर मालवा