भीतर की बात
रचनाकार का मन सबका मन होवे सै खुद तै हट कै पूरी दुनिया में घट रही घटनाओं को आपणी कविता के माध्यम से अंकुरित करै सै। रचनाकार अपनी कविता एक खातिर नहीं बल्कि पूरे समाज खातर लिखै सै, सबकै लिये लिखै सैं। मैं ग्रामीण जीवन परिवेश से जुडा हुआ हूं। उस परिवेश की सुगंध मैं अपनी कविताओं के माध्यम तै कविताओं की सुगंध ग्रामीण परिवेश तक पहुंचाण की कोशिश करू सूं। मेरी कविता का आकर्षण, अर परिवेश की निकटता ही असली मानव को निर्मित बनाने का काम करै सै यू हे आधार सैं
मेरा नये काव्य समूह में मैंने अपने ग्रामीण क्षेत्रों की भूमिका को कविता के माध्यम से एक नया रूप दिया सै। कविताओं के माध्यम से मुझे कटु सत्य लिखने का भरसक प्रयास किया सै। अर पाठक को सोचने और अनुभव करने को विवश करा सै। आज के टैम में नैतिकता को कुचल डाला सै और दयालु को भी मिटा डाला सै। स्वतंत्र भारत में भी आदमियों के अधिकारी, सुख आदि चुन्नी के पलले की तरह ढक राख्या सै। याडे़ समाज के कुछ लम्बरदारों ने कब्जा कर राख्या सै आज भी वहीं स्थिति होग्यी सै जो आजादी के टेम पै थी।
आज कुर्सी ही खैन्चे मंें धंसी पड़ी सै उसनै साफ करणीयां कोन्या, कोई ना अच्छी तरह से सम्भाल पारे से क्योंकि कुर्सी ते बहुत सारे दाग लाग्य रहे सै जिस प्रकार बरसात के टेम अच्छी खासी दिवार भी छत की मिट्टी से बदरंग हो जावै सै यूं हे कारण सै आज नैतिकता, विश्वास, सच, आत्मीयता सब की सब खुग्यी सै।
अर जीवन को पिछाण नहीं रही सैं। हर आदमी का दिमाग जकड़ा हुआ सै किसी नै किसी रूप में उसने जकड़न सै उभर कर बाहर नहीं आ रहा है। अलग-अलग चेहरा में बहुत घणाएं फर्क आवै सैं। जिनके कारण नकली दिखावा ढेर हो रहा सैं
मन्नै मेरे इस काव्य संग्रह में राष्ट्रीयता, प्राकृतिक व जमीन में दबे हुए मुद्दों को उठाने की कोशिश की सैं मन्नै नये पाठाकें के दिलों दिमाग पर जकड़न हटाने की कोशिश की सैं जो आज चारों ओर फैला हुआ सै।
मुझे इतना तो मालूम नहीं सै कि किसी कविता में अलंकार, छंद, रस दिया गया सै लेकिन मुझे इनको कविता में पिरोने का पूरा प्रयास किया है।
लेकिन आज का समय छंद मुक्त कविताएं लिखने का दौर सै या मैं कह सकूं सूं कि छंद मुक्त वादी युग कोनी क्योंकि आज के टेम में भी छंद मुक्त कविता में अपनी जुबान का रस घोल देते दै कि लय की गति ओर बढ़ जावै सैं मेरा नया काव्य संग्रह मैं छंद बांधन खातर कतराता हूं क्योंकि इस मामले मैं अभी नर्सरी कक्षा का बच्चा सूं। अगर कविता के भीतर लय नहीं सै तो वह कविता नहीं रहती।
मन्ने किसी से एक को दोषी देना गलत सै कोई आज का दौर हवा मैं बाते कर रहा सै अर जिस तरफ की हवा होवै सै उसी ये बात करै सै सब कुछ हवा के अन्दर बह गया सै कुण जानै सै के भविष्य की नोका कित डटगी या डूबगी। इस बात का तो बेरा कोन्या।
मन्नै इस कविता संग्रह के अन्दर यथार्थ झलकाने की पूरी कोशिश करी सै। मेरी आशा सै कि आपको मेरा यूं नया दूसरा काव्य संग्रह जरूर पसंद आवेगा। पिछले में मन्नै अनेक सामाजिक कुरीतियों को दूर किया सै। इस काव्य संग्रह में भी ठीक मन्नै समसामयिकी विषयों पर ज्यादा जोर डाल्या सै।
खान मनजीत भावडि़या मजीद
सोनीपत (हरियाणा)