क्या किनारा मिलेगा

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abdul
तुम्हारी नज़र का इशारा मिलेगा,
तो टूटे दिलों को सहारा मिलेगा।
मेरे दर्द को जब किनारा मिलेगा,
मुझे जीने का फिर सहारा मिलेगा।
खुदाया मेरे मैं जो मझधार में हूँ,
कभी मुझको भी क्या किनारा मिलेगा।
कभी अजनबी रास्तों में कहीं तो,
मुझे मंज़िलों का इशारा मिलेगा।
हमेशा अँधेरों से लड़ता रहा हूँ,
मुझे रौशनी का भी तारा मिलेगा।
कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था,
कि रंगीन इतना नज़ारा मिलेगा।
शबे-वस्ल में तेरी बांहों का मुझको,
नहीं था यकीं कि सहारा मिलेगा।
‘मुसाफिर’ ज़रा देख लो आ के इक़ दिन,
कि टूटा हुआ दिल हमारा मिलेगा॥
                                                   #अब्दुल रऊफ ‘मुसाफ़िर’
परिचय : अब्दुल रऊफ ‘मुसाफ़िर’ को लिखने का शौक है। आप मध्यप्रदेश के सेंधवा(जिला बड़वानी) में रहते हैं। 

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