दीदी के अंगने में भाजपा का क्या काम है

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कोलकाता की सड़कों पर भाजपा के लोग अकसर एक फिल्मी गीत गाते हुए मिलते
हैं-एक बंगला बने न्यारा, रहे कुनबा जिसमें सारा, सोने का बंगला, चंदन का
जंगला, अति सुंदर प्यारा-प्यारा। वहीं दीदी के कार्यकर्ता गाते हैं कि
मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है। अब मुसीबत यह है कि एक दल के लोग
वहां एक बंगला बनाना चाहते हैं तो दूसरी ओर दीदी के कार्यकर्ताओं का कहना
है कि मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है। इस कारण वे अगर एक दूसरे के
काफिले पर आक्रमण करते हैं तो इसकी वजह समझ में आती है। हालांकि भारतीय
संविधान ने सभी को यह अधिकार दे रखा है कि वह जहां चाहे वहां बंगला बना
सकता है। वोट के आधार पर चुनावी जमीन खरीद सकता है लेकिन दीदी के
कार्यकर्ता इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। यहां तक कि दीदी भी अपनी
चुनावी जमीन बचाकर रखना चाहती हैं। वह नहीं चाहतीं कि कोई उनकी चुनावी
जमीन का अतिक्रमण करे। आखिर उन्होंने बड़ी मेहनत से लाल-लाल बंगाल में
अपना झंडा गाड़ा था। तब उन्हें भी लाल झंडे वालों से जूझना पड़ा था। लाल
झंडे को उखाड़ने के लिए उनके कई कार्यकर्ता भी शहीद हुए थे। अब जब लाल
झंडा उखड़ गया तो भाजपा वहां अपना एक बंगला बनाना चाहती है। यह दीदी कैसे
बर्दाश्त कर सकती हैं।
वैसे भी बंगाल में देवियों की पूजा की परंपरा है। ऐसे में दीदी ने अपना
परचम लहरा रखा है तो वह दूसरे दल के परचम को कैसे लहराने दे सकती हैं। इस
लिए आये दिन उनके कार्यकर्ता बंगला बनाने का सपना देख रहे भाजपा के लोगों
पर आक्रमण करते रहते है। यहां मुख्य लड़ाई बंगला बनाने को लेकर है।
अब आने वाला विधान सभा चुनाव ही यह बतलायेगा कि वहां भाजपा का सुंदर और
न्यारा बंगला बनाता है या दीदी का परचम लहराता है। वैसे अभी तक जो हाल है
उसमें दीदी किसी भाजपा नेता को बंगाल में घुसने नहीं देना चाहती हैं। वह
जानती है कि अगर भाजपा नेता बंगाल जाने वाली ट्रेन के डिब्बे में पैर
रखने की जगह पा लेंगे तो आगे चलकर पूरी सीट पर अपना बिस्तर लगा लेंगे और
कोलकाता आकर बंगला भी बना लेंगे। इसलिए उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को
निर्देश दे रखा है कि गाओ मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है। अंगना
मेरा है तो इसे बुहारने का काम भी मेरा है। इसे सजाने और संवारने का काम
भी मेरा है।
दीदी यह भी जानती है कि भाजपा के लोग किसी भी राज्य में अपना बंगला बनाने
के माहिर खिलाड़ी हैं। बहुमत न भी मिले तो भी वे जोड़-तोड़कर अपना बंगला बना
ही लेते हैं और अपना पहरेदार भी बहाल कर लेते हैं। इसलिए उन्होंने यह
नुस्खा अजमा रखा है कि इन्हें बंगाल आने ही नहीं देना है। अगर ये बंगाल
आयेंगे ही नहीं, तो चुनावी जमीन पर कब्जा करके बंगला भी नहीं बना
पायेंगे। लेकिन भाजपा के लोग भी है जो मानने को तैयार नहीं हैं। वे
कोलकाता की सड़कों पर गाते हुए मिलते हैं कि दिल तोड़ के हंसती हो मेरा
वफायें मेरी याद करोगी। मेंहदी प्यार वाली हाथों पे रचाओगी, घर मेरे बाद
गैर का बसाओगी। वे नहीं चाहते कि विधान सभा चुनाव के दौरान वोटर रूपी
प्रेमिका उनसे रूठ जाये और प्यार वाले हाथों में मेंहदी लगाकर घर दूसरे
का बसाये। इसलिए वे वोटर रूपी प्रेमिका को लुभाने का काई कोरकसर बाकी
नहीं रखना चाहतें। दीदी है कि मानती ही नहीं। उन्हें लगता है कि भाजपा के
लोगों का बंगाल में बंगला बनाने का सपना टूट जाये तो टूट जाये, लेकिन
मेरा दिल बंगाल की जनता के साथ हमेशा जुड़े रहना चाहिए। अब देखना यह है कि
बंगाल के लोग जो मेरा नाम जोकर फिल्म की तर्ज पर एक बड़ा दिल लिए बैठे हैं
वे आने वाले विधान सभा चुनाव में उसे किसे देते हैं। यह दिल दीदी के
कब्जे में होगा या भाजपा के।

नवेन्दु उन्मेष
रांची (झारखंड)

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