पिता एक वटवृक्ष है
जिसकी छाया तले
पोषित होती हैं
कई जिंदगियां
चढ़ती हैं कई बेले -लताएं
उसके विशालता का
आलिंगन करने के लिए ।
पिता एक आच्छादित उपवन है
जहां पर मंडराती हैं
कई तितलियां -भवरे
बसाता है कई सारे बाग बगीचों को ।
पिता एक बागवान हैं हैं
जो सींचता है
अपने खून पसीने से
अपनी नवांकुरों को
प्रस्फुटित करता है
जिंदगी का राग।
पिता संगीत की सरगम है
जो झंकृत करता है
शब्दों से खुशियों की
तरंगों को ।
पिता सूरज है
जिसके ताप से
रोशन होता है
परिवार
और चलता है नाम
जमाने में प्रतिष्ठा का ।
पिता एक अंगूठा है
हाथ की हथेली का
जिससे कर्मठता का पाठ
पढ़ाया जाता है ।
जीवन सफर की हर मुश्किलों को
पर्वत की भांति
तनकर
आसान बनाता है
राह सभी की ।
परिवार के ज्ञान और संस्कारों
की अमिट धरोहर
लेकर जीता है
अपने अस्तित्व में
पर खामोश सा रहता है
अपने जवाबदारीयों के
निर्वाहन के खातिर
सागर की गहराइयों को
अपने वजूद में समाए हुए।
स्मिता जैन