उदगम् स्थल में,अति सूक्ष्म- सी,
कल कल मस्ती में,शैशव-सी
जिंदगी नदी-सी।
मुश्किलों से भिड़ जाती
बाधाओं,
पर्वतों से टकराती- सी,
जिंदगी नदी-सी।
जहाँ से जाती बालू सिमटाती
सब प्रेम भरे रिश्तों नातों-सी,
जिंदगी नदी-सी।
मैदानों में शांत चित्त-सी,
प्रपातों में उग्र व्यग्र-सी..
जिंदगी नदी-सी।
सभ्यताओं के संग बहती-सी,
लेकर सब गंदगी समाज की..
जिंदगी नदी-सी।
अंत में पयोधि में मिल जाती,
अपना सर्वस्व छोड़कर
नारी-सी..
जिंदगी नदी-सी।।
#शशांक दुबे
परिचय : शशांक दुबे पेशे से उप अभियंता (प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना), छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश में पदस्थ है| साथ ही विगत वर्षों से कविता लेखन में भी सक्रिय है |