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“बधाई हो माजी लड़की हुई है” दरवाजे के पास ही बैठी हुई शैला से नर्स आकर कहती है।
“क्या फिर से लड़की है?”
यह कहते हुए शैला के लफ्ज उसके गले में ही अटक जाते हैं। वह रूआसी-सी होकर नर्स की तरफ देखती है। मुस्कुराती हुई नर्स का चेहरा शैला के हृदय को चूर-चूर कर रहा था। मानो वह भी शैला के घर दूसरी पोती के जन्म पर उसे नकली हंसी दिखा कर उसके भाग्य पर चुटकी ले रही हो।
तभी शैला का बेटा नमन अपनी बड़ी बेटी के साथ वहां आता है। माँ का उतरा हुआ चेहरा देखकर नमन को आभास हो जाता है कि फिर से उनके घर बेटी ही हुई है। माँ बेटे एक साथ बैठे हुए अपनी किस्मत पर तरस कर रहे थे। तभी उन्हें कमरे के अंदर से जोर-जोर की हंसी की आवाज सुनाई देती है। शैला और नमन दोनों कमरे की तरफ झांकते हैं और देखते हैं कि उनकी बड़ी बेटी डॉक्टर और नर्स को चॉकलेट बांट रही हैं।
शैला – “अरे लड़की तू ये क्या कर रही है और तू यह मिठाई क्यों बांट रही है? हमारे घर बेटी हुई है बेटा नहीं। और लड़कियों के पैदा होने पर ज्यादा खुशियां नहीं मनाया करते हैं।”
यह कहते हुए शैला अपनी पोती की हाथ से चॉकलेट की थैली छीन लेती है। छोटी पोती उदास होकर कभी अपनी माँ को तो कभी अपनी दादी को देखती है।
अपनी भोली- सी आवाज में कहती है- “पापा ये बेटियों के जन्म पर मिठाईयां क्यों नहीं बांटी जाती है। क्या वे इंसान नहीं। दादी इतनी क्यों उदास है कि उनके घर दूसरी लड़की आई है। पापा जब मेरा जन्म हुआ था क्या तब भी दादी इतनी ही उदास हुई थी। पापा लोग लड़कियों के जन्म पर ही दुखी क्यों होते हैं।”
बेटी के इन सभी सवालों ने नमन को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि “आखिर वे अपनी ही संतान की जन्म पर इतना क्यों दुखी हो रहे हैं। क्योंकि वह संतान बेटा नहीं बेटी है इसीलिए। जब वे ही अपनी संतान के जन्म पर इस तरह दुखी होकर बैठ जाएंगे तो लोगों को तो पूरा हक होगा उनका मजाक बनाने का और आज के वक्त में तो लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कमजोर नहीं है या फिर कहे तो लड़कियां कभी कमजोर थी ही नहीं बस उनके पास मौका नहीं था या हम जैसे लोगों ने उन्हें मौका मिलने ही नहीं दिया।यह लड़कियां हमारे परिवार का भविष्य हैं और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उन्हें एक उज्जवल भविष्य देख कर इनके पंखों को उड़ने का मौका दूं।”
यह सोचती हुए नमन अपनी नवजात बेटी को गोद में उठाकर देर तक निहारता है और पास ही में खड़ी शैला अपने हाथ में रखी चॉकलेट की थैली से चॉकलेट निकालकर सभी का मुंह मीठा करवाती हुई अपनी पोती को गले से लगा लेती है। और एक बार फिर से पूरे कमरे में हंसी की लहर दौड़ जाती है।
परिचय
नाम – नेहा शर्मा।
माता – मन्जू शर्मा।
पिता – कृष्ण कुमार शर्मा।
शिक्षा – स्नातक वर्ष में अध्ययनरत।
विधा – कहानी,कविता,लघुकथा,आलेख।
प्रकाशित रचनाएँ – “शब्द-सरोकार”, “शुभ तारिका”, “जगमगदीप ज्योति”, “लघुकथा कलश”, “हरियाणा प्रदीप” “अनुभव पत्रिका”, “रचनाकार”, “मातृभारती”, “प्रतिलिपि” में प्रकाशित रचनाएँ।
पुरस्कार – शुभ तारिका से प्राप्त “श्रद्धा पुरस्कार”।
“माई वीडियो स्टोरी कॉन्पिटिशन” में पुरस्कृत रचना।
“मोरल स्टोरी स्पर्धा” में पुरस्कृत रचना।
लेखन उद्देश्य – लिखने का उद्देश्य केवल मन को आनंदित करना नहीं है। बल्कि लिखने का ध्येय तो समाज में कुछ ऐसे नव परिवर्तन करने का है, जो लोगों के दिल और दिमाग को अंदर तक प्रभावित करें। अगर मेरे द्वारा लिखी हुई रचनाओं से समाज में अंशतः भी परिवर्तन संभव हो सके, तो मैं अपनी साहित्यिक सेवा को सफल समझ सकूँगी। मेरी तो असीम कृपालु मां शारदे से यही प्रार्थना है कि वह हर साहित्यकार की कलम को इतनी ताकत प्रदान करें कि समाज में नव परिवर्तन के लिए एवं किसी भी बुराई को समाप्त करने के लिए कोई हथियार उठाने की आवश्यकता ना पड़े। वह स्वतः ही कलम की ताकत से नष्ट हो जाए। अगर ऐसा सम्भव हो सके तो हर रचनाकार अपने जीवन को धन्य मान सकेगा।अलवर (राजस्थान)
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