बैजनाथ चालीसा

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आगर के उत्तर बसे,बैजनाथ भगवान।
मनोकाम पूरण करें, सदा संवारे काम।।
ऊपर मंगलनाथ है,खेड़ापति के पास।।
मोपे किरपा कीजिये,एक तुम्हारी आस।।

रत्ना मोती सुंदर सागर।
धन्य भूमी है माता आगर।।१
मध्यदेश की थी रजधानी।
नवम सदी इतिहास बखानी।।२
अचलेश्वर मां तुला भवानी।
भेरु केवड़ सबके स्वामी।।३
जय जय बैजनाथ भगवाना।
तुम्हरी कीरति सब जग जाना।।४
आगर उत्तर भेटा ग्रामा।
गंगा तट पावन स्थाना।।५
अमरत नीरा पेड़ घनेरे।
जंगल वास करें शिव मेरे।।६
आसपास पर्वत हरिआये।
नित उठ भोले का जस गायें।।७
कपियन की तो फौज बसाई।
पशु पक्षी रहते हरषाई।।८
संवत पंद्रह सौ पिच्चासी।
माघ चौथ शुक्ला अविनाशी।९
मोड़ वैश्य ने नींव खुदाई।
छोटा सा मंदिर बनवाई।।१०
राजा रानी दुख में आए।
कुष्ठ रोग से मुक्ति पाए।।११
गौ माता की कथा पुरानी।
पयअभिषेक करें नितआनी।१२
सन अट्ठारह सौ उन्यासी।
कर्नल मारटिन थे अगाशी।।१४
काबुल नगरी कीन पयान।
छोटी सेना आयुध नाना।।१५
पतिदेव पर घात न आनी।
मंदिर की थी मन में ठानी।।१६
बाबा रण थे साधु वेश में।
करते वारा खड़ग तेश में।।१७
तिरशूल मार सही न जाई।
विपद देख सेना घबराई।।१८
रण में नायक विजया पाई।
पाती पत्नी को भिजवाई।।१९
भारत से इक बाबा आयो।
बाने मोही जंग जितायो।।२०
पत्नी प्रेरित कर्नल आई।
मंदिर की नीति बनवाई।।२१
देश देश से भूप बुलाये।
नवनिर्माण दान करवाये।।२२
सन अट्ठारह सौ तर्रासी।
पूरी सहस इकादश राशी।।२३
मास जुलाई सन इकतीसा।
जय नारायण पायो ईशा।।२४
शंकर सुमिरन भूले देहा।
तीन बजे जब आये गेहा।।२५
लागी भूख न पानी प्यासा।
भूले कचहरी फूली सांसा।।२६
शिव ने सीधी पेशी कीनी।
केस जितायो भक्ति दीनी।।२७
नंदी नायक अंब विराजे।
ढोलक डमरू घंटा बाजे।।२८
शबरी मंगल हनुमत मंदर।
कूदे फांद करें सब बंदर।।२९
पाठ रामायण भी नित होवे।
पूजन भक्ति मन को मोहे।।३०
लगन पत्रिका शिव से पाई।
काज करें मन में हरषाई।।३१
अंतिम क्रिया करते घाटा।
पिंडदान अरु तीरथ बाटा।।३२
दूर-दूर से साधू आते।
अन्नक्षेत्र में भोजन पाते।३३
बैजनाथ महिमा जो गाते।
वे नर भवसागर तर जाते।३४
खाय भभूत पीवे शिव नीरा।
काटे रोग हरे सब पीरा।।३५
गांव गांव से झंडे आते।
बाबा का सब ध्यान लगाते।३६
श्रावण अंतिम सोमवारा।
भव्य सवारी अरु भंडारा।।३७
जो भी द्वारे तेरे आता।
मन वांछित सारे फल पाता।३८
जयजय जय भोले सुखदाई।
महिमा तेरी वेदन भाई।।३९
दास मसानी ने पद गाया।
तूने ही तो पार लगाया।।४०

यह चालीसा जो पढ़े,और करे विश्वास।
बैजनाथ दरबार में, होती पूरी आस।।
मार्टिन को जंग में, हातिम को व्यापार।
बापजी करी पैरवी,मोहि लगाओ पार।।

डॉ दशरथ कुमार मसानिया
आगर मालवा

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।