ज़ब जब वर्षा ऋतु आई
नभ मे काली घटा छाई
दिन मे अँधेरी छा जाये
मनवा मेरा बहुत घबराये
बिजली बहुत चमक रही थी
मन मन मे मैं डर रही थी
मुझे तुम बहुत याद आये
मुझे तुम बहुत याद आये
ज़ब ज़ब श्रंगार करने को चली
अपने पिया की होने मैं चली
तुमने ही मुझे दिया सहारा
और दर्पण को मैंने निहारा
मुझे तुम उसमे नजर आये
मुझे तुम बहुत याद आये
मुझे तुम बहुत याद आये
ज़ब ज़ब मेरा मन भटका
मेरा मन तुम्हारे लिए तरसा
मैंने प्रभु मे ध्यान लगाया
उनको काफ़ी मैंने मनाया
पर वे ध्यान मे न आये
तुम्ही ध्यान मे मेरे आये
मुझे तुम बहुत याद आये
मुझे तुम बहुत याद आये
ज़ब ज़ब पतझड़ आया
मेरे जीवन मे अंधेरा छाया
पूछा पतझड़ से तुम क्यों आते
बोला प्रकृति को नया करने आता
मैं समझ गयी उसकी ये बाते
तुम मेरा जीवन नया करने आये
मुझे तुम बहुत याद आये
मुझे तुम बहुत याद आये
ज़ब ज़ब मुसीबते आई
अपनों ने निगाहेँ फिराई
गैरों ने दिया मुझे सहारा
अपनों ने किया किनारा
मै इतनी दुखी हो चली थी
मैं आत्महत्या करने चली थी
मेरे कदम तब डगमगाए
मुझे तुम बहुत याद आये
मुझे तुम बहुत याद आये
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम.