तपती धरती की प्यास बुझाकर,
सूखी नदियों में आस जगाकर,
बादल करते हैं, एक नई शुरुआत।
नन्हीं चिड़िया तिनके बुनकर,
छोटी चींटी दाने चुनकर,
करतीं हैं एक नई शुरुआत।
वसंत ऋतु के आने से
प्रकृति के शृंगार की,
होती है एक नई शुरुआत।
नई सभ्यता नई संस्कृति से,
उम्मीदों की नई किरणों से,
हारे हुए तन-मन-जीवन में,
करनी है एक नई शुरुआत।
कर्मशील बन, स्व-विवेक से,
जीवन-पथ पर आगे बढ़कर,
हम भी करें, अब नई शुरुआत-2
परिचय:नाम:- योगेन्द्र कुमार शर्मा
जन्म स्थान:- हिण्डौन सिटी
वर्तमान पता:- जयपुर
राज्य:- राजस्थान
शहर:- जयपुर
शिक्षा:- एम.ए. (संस्कृत), बी. एड.(संस्कृत, हिंदी)
कार्यक्षेत्र :- हिंदी अध्यापक (टी.जी.टी.)
लेखन उद्देश्य:- स्वरुचि
Aapki is mahatvapurna aur lajwaab kavita “Shuruaat” ke liye bahut bahut badhaai!!
Very good yogendra sir
Sundar kabita
Thanks ma’am
A dream doesn’t become reality through magic, it needs determination and hard work.
This poem shows both the elements.
Really a nice effort mamaji.