खाने को रोटी नहीं
रहने को नहीं मकान।
पर फिर भी कहते
मेरा भारत महान।।
पहले ही रोजगार नहीं थे
और थे जो भी चले गए।
कुल मिलाकर फिर से
हम बेरोजगार हो गये है।
और फिर से परिवार
पर बोझ बन गये है।
सच कहें तो अच्छे दिन
हमारे देश के आ गए है।।
किया धरा किसी और का
भोग रहे है हम सब।
फिरभी सपने दिखा रहे है
पर रोजगार नहीं दे पा रहे।
अब तो इंजीनियर एमबीए…
बेच रहे है मूफली।
क्योंकि पापी पेट का
जो अब सवाल है।।
क्या से क्या हालत
अब देश का हो रहा है।
इसलिए बेरोजगारी दिवस
बड़ी धूमधाम से मना रहे है।
शायद इसे ही लोग आधुनिक
आत्मनिर्भर भारत कह रहे है।
और अपनी बेबसी पर
हमसब आज रो रहे है।।
न कोई चिंता न कोई काम
घर बैठे देखते रहो सपने।
सपने देखना भी तो है
एक बहुत बड़ा काम।
जिसे रोजगार में गिना जाता है
और आंकड़े यही दर्शा रहे है।
की कहां हमारे देश में
कोई बेरोजगार बचे है।।
इसलिए तो होश हवस में
कहा रहा हूँ कि।
खाने को रोटी नहीं
रहने को नहीं मकान।
पर फिर भी कहते
मेरा भारत महान।।
जय जिनेन्द्र देव
संजय जैन (मुम्बई)