उस दिन मैं सुबह सोकर उठी तो मैंने देखा कि मेरी बालकनी में एक चिड़िया चहचहा रही थी-चिरर..चिरर.. चिरर..। मैंने जाकर देखा तो वो नीले रंग की छोटी-सी चिड़िया थी, जिसके पंख पर सफेद रंग का डॉट था। मैं जल्दी दौड़ कर अंदर गई और कटोरी में पानी और दाना लाकर रख दिया और पर्दे के पीछे छुप गई। मैंने देखा,उसने थोड़े से दाने खाए, पानी पिया और उड़ गई। बस फिर क्या था मैं रोज उसके लिए दाना-पानी रखती। वो आती दाना खाती, पानी पीती और उड़ जाती।उसके पंख पर डॉट होने के कारण मैंने उसका नाम ‘डोटी’ रख दिया था। डोटी सुबह जल्दी आती,इसलिए मैं भी जल्दी सोकर उठने लगी। अब वो मेरी दोस्त हो गई थी।आज भी मैंने सुबह दाना रखा,पर डोटी का कहीं भी अता-पता नहीं था। मैं उदास हो गई, दिन भर मेरा मन कहीं भी नहीं लगा। शाम को पार्क में खेल रही थी कि, मेरी बॉल पास की झाड़ी में चली गई। जब मैं बॉल उठा रही थी तो मुझे वहां एक चिड़िया मरी हुई दिखी। मेरा दिल जोर से धड़कने लगा कि,कहीं ये ‘डोटी’ तो नहीं…!मैंने उसके पास जाकर उसके पंख पर वो सफेद डॉट देखना चाहा पर अंधेरा होने के कारण मुझे वो दिखाई नहीं दिया।मैं भारी मन से घर आ गई और खाना खाकर सो गई ।
फ़िर अचानक ‘चिरर,चिरर..चिरर’.. इस आवाज़ ने मुझे जगा दिया। मैं दौड़कर बालकनी में गई,तो वहां डोटी फुदक-फुदककर शोर मचा रही थी। मैं उसे देख कर खुश हो गई।मैंने झटपट उसके लिए दाना रखा,पानी रखा। उसने दाना खाया,पानी पिया और चहकती हुई ऊंचे आकाश में उड़ गई। मैं समझ गई कि,झाड़ी वाली चिड़िया जरूर धूप,?भूख और प्यास से मरी होगी।
#अलीशा सक्सेना