तुमसे है प्रेम कितना,
यह नापने के लिए
कोई पैमाना नहीं..
यह बताने के लिए,
कोई शब्द भी नहीं..
कोई जतन भी नहीं
यह तुम्हें जतलाने के लिए
क्योंकि,तुम्हारे और मेरे शब्द व उनके अर्थ
तुम्हारी व मेरी भाषा
एक हो चुके हैंl
अब मैं तुम्हारी चुप्पी को भी,
सुनने का सामर्थ्य रखती हूँ..
तुम्हारे सपने मेरे सपने,
हमारी जमीन पर पलते हैं
यहीं हम वह तल हैं,
जहाँ हम मिलते हैं और
पा जाते हैं सब-कुछ,
बिना कुछ कहे सुने..
एक आत्मिक अनुपम
तृप्त से अहसास कोl
#डॉ.मनीषा शर्मा
परिचय : शिक्षाविद् के रुप में डॉ.मनीषा शर्मा लम्बे समय से अध्ययन कार्य से जुड़ी हुई हैंl वर्तमान में आप शहर के एक निजी कॉलेज में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग की विभागाध्यक्ष हैंl इन्दौर में ही आपका निवास है और लेखन क्षेत्र में सक्रिय लेखिका के तौर पर जानी जाती हैंl आपकी सात किताबों का प्रकाशन हो चुका है और साहित्य के क्षेत्र में कई सम्मान(जनकवि सम्मान,माहेश्वरी सम्मान,शब्द प्रवाह सम्मान आदि) प्राप्त हो चुके हैं।
Out standing
डॉक्टर मनीषा शर्मा की कविता उत्कृष्ठता से परिपूर्ण भावनाओ से युक्त है। सुन्दर शब्द चयन के साथ ही प्यार को अनुपम रूप में रूपायित किया है। अनुभति के स्तर पर प्यार बस प्यार है।
मनीष जी एवम मातृभाषा.कॉम को हार्दिक बधाई एवम मबगलजमनाएँ।
राजकुमार जैन राजन, आकोला
(संपादक, प्रकाशक, पत्रकार, लेखक)
एक आत्मिक अनुपम
तृप्त से अहसास कोl
यही तो प्रेम है जिसकी कोई भाषा नहीं।
बहन मनीषा जी,कविता अंतर्मन को छूती प्रतीत होती है,बिना विराम के लेखनी यूं ही चलती रहे ।
मस्त
बहुत सुंदर रचना हुई है बधाई स्वीकारें आदरणीया