मन करता हैअलमस्त हो, मैं एक ऐसा गीत लिखुँ|
गीत लिखुँ मनमीत लिखुँ ,मिट्ठे–मिट्ठे संगीत लिखुँ|
जग उलझन से हो परे, मैं अपने मन का गान लिखुँ|
जो जन इस जग में, अपने को जितना खोता है |
मृगतृष्णा में खोकर वो, कब शांति से सोता है|
जीवनभर करता छलकपट और बीज पाप के बोता हैं|
संध्या को अपने में खोकर, फिर अंतर्मन में रोता हैं |
मैं नहीं चाहता ऐसा जीवन ,जो पश्चाताप से पूर्ण हो|
सांसारिक संताप से जलकर ये तन जीर्ण शीर्ण हो|
जग की वेदना से झुलस मन फिर बंजर हो जाये|
मैं तो चाहता ऐसा जीवन ,जो आन्नद का आगार हो|
बंजर हृदय में नवाकुंर हो,क्षतविक्षत तन फिर विकसित हो,
रजनी तम जो चर जाये, उन नव किरणों गुणगान लिखुँ|
मन करता है………………………………………….|
मिला कहा मुकद्दर, जिसको मैं चाहता था|
हृदय में दृढ़व्रत लेकर,आगे तो बढता रहता था|
भ्रमवश समझ बैठा था सबको अपना,
पर आज अपनों से ही धोखा खाता हूं|
तो छुपकर अपने भाग्य पे ,हररोज आँसू बहाता हूँ |
ज़िन्दगी के सफ़र को संगीत मय बना सकुं|
सांसारिकता से बन अजनबी, मैं प्रेम का संचार लिखुँ|
मन करता है……………………………………..|
मैं बचपन से निहारता था गिरगिट का रंग बदलना,
अब जाकर पहचाना मैनें ,वो तो जीवन सत्य था|
उसका रंग बदलना तो उसकी फ़ितरत थी,
पर अपनों में छिपे गिरगिटों के दर्शन जब करता हूँ|
तो मन करता है नफ़रत से भरी एक ऐसी राग लिखुँ|
मन करता है………………………………… |
कभी -कभी सोचता हूं क्या रखा है इस जग में?
फिर भी तसल्ली देता हूँ अपने को कि है राही!
कर्त्तव्यपथ पर बाधा तो आयेगी पग -पग में|
फिर मायूस मन को,नई उमंग देे,बढ जाता हूँ अज्ञात राहों पर|
अनजानी राहों का राही बन ,फिर गीत प्यार के गाता हूँ|
सपनों का संसार बना ,निज मस्ती की दुनियां बसाता हूँ
मन करता है………………….. |
भवसागर तरने धीवरमन से ,लहरों पे लहराना सिखुँ|
सागरतल के विष तत्वों से, निज तन को बचाना सिखुँ|
फिर मदमस्त हो बहा दू, अपने को उस खुले सागर में|
जहाँ बुलन्द इरादों से ,फिर अनुराग भरे मधुर संगीत लिखुँ|
मन करता है……………………………… |
#शिव गल्ड़वा “राही”
परिचय~
नाम~शिवरतन गल्ड़वा
साहित्यक नाम~राही
जन्म स्थान~सोनियासर,श्री डूंगरगढ, बीकानेर (राज.)
वर्तमान पता-बीकानेर(राजस्थान)
शिक्षा ~बी. एड, एम. ए(हिन्दी)
कार्य क्षेत्र ~व्याख्याता हिन्दी
विधा~कविता,निबंध लेखन
प्रकाशन~
सम्मान~कवि नाम से अभिहित एक सम्मान हैं |
लेखन का उद्देश्य ~मातृभाषा प्रसार व हिन्दी काव्य जाग्रति का प्रचार
मौलिक रचना~किसान का दर्द,अंतर्द्वन्द्व व अन्य