फिजाएँ भी रोक रहीं
हवाओं के जरिए।
मत जा तू,
सूना रह जाएगा
ये शहर।
आसमान भी रोया
लिपट कर धरती
की बाँहों में।
रोक ले उसे बस,
सूना रह जाएगा
ये शहर।
मन में हजारों संवेग,
पल रहे थे मिलन के।
हवा,पानी सब पीछे
छोड़ आए खुदा से
मिलने।
ह्रदय की नाद तन्त्रियाँ,
ध्वनित होने लगी।
सुबह की रोशनी के
लिए।
न रोक पाए ये झंझावात,
मुझे! लाख जिद की
आसमाँ ने रोकने की।
बहाता रह गया अश्क
मुँह छिपाकर धरती
की बाँहों में।
हम चल दिए खुदा
के मिलन के लिए।।
#शालिनी साहू
परिचय : शालिनी साहू इस दुनिया में १५अगस्त १९९२ को आई हैं और उ.प्र. के ऊँचाहार(जिला रायबरेली)में रहती है। एमए(हिन्दी साहित्य और शिक्षाशास्त्र)के साथ ही नेट, बी.एड एवं शोध कार्य जारी है। बतौर शोधार्थी भी प्रकाशित साहित्य-‘उड़ना सिखा गया’,’तमाम यादें’आपकी उपलब्धि है। इंदिरा गांधी भाषा सम्मान आपको पुरस्कार मिला है तो,हिन्दी साहित्य में कानपुर विश्वविद्यालय में द्वितीय स्थान पाया है। आपको कविताएँ लिखना बहुत पसंद है।