हमने अपने-पराये देखे
ख्वाब बड़े-बड़े सुहाने देखे
गम का सागर देखा
खुशियों का पिटारा देखा
धूप-छाँव का खेल निराला देखा
अपनों का अपनों पर सितम भी देखा
हमने अपने-पराये देखे
ख्वाब बड़े-बड़े सुहाने देखे
चाहने वालों को भी नफरत करते देखा
हमने जमाने को पल-पल रंग बदलते देखा
निराशाओं में आशा को पलते देखा
हमने सूखे चेहरों को हंसते-मुस्काते देखा
हमने अपने-पराये देखे
ख्वाब बड़े-बड़े सुहाने देखे
सुविधाओं को घुट-घुट मरते देखा
असुविधाओं को पलते-बढ़ते देखा
हमने जग को नजदीक से देखा
संसार को संसार की नजर से देखा |
मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगरा(उत्तरप्रदेश)