दिल में उनकी कमी हो गई है

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मुतदारिक मुसम्मन अहज्ज

दिल में उनकी कमी हो गई है
बेरूख़ी ज़िंदगी हो गई है

बह रही है जिधर चाहती वो
ज़ीस्त मेरी नदी हो गई है

उम्र भर यूँ भटकता रहा मैं
ज़िंदगी मयकशी हो गई है

हो रही है अब चर्चा हमारी
जबसे यूँ दिलकशी हो गई है

वो गए दूर जबसे बिछड़ कर
पास आए सदी हो गई है

उम्र भर चलते चलते यूँ ऐसे
अब घड़ी को सदी हो गई है

ढूँढ़ता फिर रहा हूँ गली में
चाँदनी सुरमई हो गई है

भागती जा रही खूब ऐसे
ज़िन्दगी भी घड़ी हो गई है

दर्द में थोड़ा सा मुस्कुरा दो
ज़िन्दगी मौसमी हो गई है

आज शब ख़्वाब मैंने ये देखा
सारी दुनिया भली हो गई है

साथ रहते थे आकिब’ मजे से
सोच क्यों मज़हबी हो गई है

#आकिब जावेद

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