चलो’ हम बैठ कर कुछ देर , बतियाएँ अकेले में
कही अपनी ही ग़ज़लें फिर से दोहरायें अकेले में
भले गहरी नदी है , मैं उतर जाऊँगा गहरे तक
अनाड़ी हैं कहीं वो ,कूद न जायें अकेले में
मोहब्बत नाम की ये शै , मिला करती मुक़द्दर से
अगर दें वक़्त वो हमको , तो समझायें अकेले में
बहारों में थी मँडराती हज़ारों तितलियाँ जिन पर
खिजाँ में गुल वही अक्सर ,हैं मुरझायें अकेले में
ग़ज़ब का एक ठंडापन , सा आया है हवाओं में
चलो’ हम ही कहीं , ये आग सुलगायें अकेले में
#कृष्ण बक्षी
परिचय:-
कृष्ण बक्षी
रावलपिंडी ( पूर्व विभाजन )
देश की तमाम नामचीन पत्र,पत्रिकाओं में प्रकाशन
अब तक प्रकाशित किताबें:-
हवा बहुत तेज़ है (१९८०)
एक भाषा है नदी की(१९८६)
ज़मीन हिल रही है(१९९२)
रोशनी बेताब है,ग़ज़ल संग्रह(२००२)
रंग बोलता है (२००९)
सुर्ख़ सवेरा (२०१३) कृष्ण बक्षी के गीतों पर एकाग्र
सम्पादन:-जानकी प्रसाद शर्मा
मणि मोहन
सवालों की दुनिया (ग़ज़ल की किताब) वर्ष २०१८
प्रकाशनाधीन )
सम्मान:-मुकुट बिहारी”सरोज” सम्मान,प्रयास विदिशा द्वारा विख्यात
गीतकार गोपाल दास “नीरज” द्वारा सम्मानित,मध्य प्रदेश
राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा हरिहर निवास द्विवेदी सम्मान
एवं पुरस्कार।अभिनव कला परिषद द्वारा वर्ष २०१८ का “ अभिनव शब्द
शिल्पी “ सम्मान एवं कई अन्य संस्थान द्वारा सम्मान एवं पुरस्कार।पता:-विदिशा ( मध्य प्रदेश )