हाँ, मैं स्त्री हूँ
अपने होने के वजूद पर गर्व करती हूं
मुझे नहीं बनना बुद्ध, राम और श्याम
मुझे तो अपने यशोधरा, सीता और राधा
होने पर गर्व है
मैं क्यों छोड़ कर घर अपना
भटकूं सत्य की तलाश में
जंगलों में, वीरानों में
मेरा सत्य तो मेरा परिवार है
जिसकी मैं धुरी हूंँ
संस्कारों की, सभ्यताओं की जननी हूं
सत्य तो मेरे संस्कारों में पलता है
मेरी कोख में है नए जीवन का निर्माण
मैं हरती हूँ पीड़ा जग की
अपने वात्सल्य भाव से
सजाती हूँ,सवाँरती हूँ
अनंत सी सृष्टि को
देती हूं रूप अपना
पाती हूं संपूर्णता को ।
दुर्गा बनकर नष्ट करती हूं
अपने कुसंस्कारित बच्चों को
राह जो विनाश की थाम लेते हैं।
मेरे अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालों
नहीं देना अपने होने का प्रमाण
क्योंकि मैं ही तो धरती हूंँ
श्रृंगार हूं इस सृष्टि का।
क्या मेरे अस्तित्व के बिन
पुरुष का कोई अस्तित्व नजर आता है
उसकी संगिनी हूं ,गुलाम नहीं
उसकी प्रिया हूँ ,जायदाद नहीं
हमसफर हूँ , मुफ्त की खैरात नहीं
सामजस्य ही रहता है मेरे संग
जबरदस्ती अधिकार नहीं
कोमल हूँ , कमजोर नहीं
दृढ़ प्रतिज्ञ हूँ ,कठोर नहीं
हाँ मैं स्त्री हूँ
इंसान हूँ
बोझ नहीं
मत रौंदों मुझे
गर्भ में, दहेज में, बलात्कार में
रिश्ता हूँ, त्योहार हूँ ।
स्मिता जैन