क़त्ल करता है मुस्कुराहट का,
उफ़्फ़ क़यामत है दर्द का झटका।
सब गुज़रते हैं मेरे सीने से,
मैं हूँ इक पायदान चौखट का।
बादलों से बचा लिया मैंने,
चाँद लेकिन शजर में जा अटका।
एक मुद्दत हुई ये दरवाज़ा,
मुन्तिज़र है तुम्हारी आहट का।
मैं जो दीदार को तड़पता हूँ,
ये करिश्मा है तुम्हारे घूँघट का।
पास हैं हम कि दूर क्या समझें,
फ़ासिला है तो एक करवट का।
जिस्म बिस्तर पे ही रहा शब भर, दिल न जाने कहाँ-कहाँ भटका॥
#सुभाष पाठक ‘ज़िया’
परिचय : सुभाष पाठक लेखन में उप नाम ‘ज़िया’ लगाते हैं। जन्म १९९० में हुआ है। आप काफी समय से ग़ज़ल लिख रहे हैं। मध्यप्रदेश के ज़िला शिवपुरी से सम्बन्ध रखते हैं।
Thanks for the great guide