चलो आजादी का पर्व मनाते हैं
झूठा ही सही
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं
तिरंगे को जो भुनाते हैं
झूठें देशभक्तों को
हम सलाम करते हैं
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं |
संसद में बैठे भेड़ियों को
वोट का दान करते हैं
अंग्रेजी मानसिकता से ग्रसित
लालफीताशाही का गुणगान करते हैं
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं |
खादी के चरणों में लोटपोट होती खाकी
नेतारूपी कीड़ा, फसल रूपी देश को चट करता
गुंडा, माफिया आखिर खाकी से क्यों नहीं डरता ?
मेरा गरीब भारत रोज – रोज मरता |
हम पी रहे नित धर्म की घुट्टी
और कर रहे इंसानियत की छुट्टी
सच तो ये है कि मेरे देश के झंडे का रंग बदला है
बाकी वही सब अंग्रेजों वाला है
एक लुटेरा जाता है तो दूसरा आता है
भारत माँ का चीर हरण कर जाता है |
देश बिक गया पूँजीपतियों के हाथों में,
हम ताली-थाली रहे बजाते
सैनिक सीमा पर शौर्य प्रदर्शन रहे दिखाते
और हम नेताओं को भगवान रहे बनाते
नेता स्विस खाते करते रहे लबालब
चलो सब छोड़ो –
स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं ||
- मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
फतेहाबाद, आगरा