हर रात अंधेरे से महज़ कहने को है,
वह अंधेरा तो सूर्यास्त किए बैठा है।
इस अंधेरे से चाँदनी की आस मुमकिन है,
वह अंधेरा तो चाँदनी छुपाये बैठा है।।
इस अंधेरे में रात की नींद है नाज़िल,
वह अंधेरा तो दिन में सुलाये बैठा है।
इस अंधेरे में सपने सजोये जाते है,
वह अंधेरा तो सपनों को छीन लेता है।।
इस अंधेरे में थकान दूर होती दिन की,
वह अंधेरा तो रात में थकान देता है।
इस अंधेरे में आशियाना नसीब होती है,
वह अंधेरा तो आशियाना उजाड़ देता है।।
इस अंधेरे में अपनों से मिलन होती है,
वह अंधेरा तो अपनों से दूर करता है।
इस अंधेरे से ताज़गी दिन भर के लिए,
वह अंधेरा ज़िंदादिली भी छीन लेता है।।
परिचय
ज़हीर अली सिद्दीक़ी
सिद्धार्थनगर(उत्तरप्रदेश)
शिक्षा-स्तनातक एवं परास्नातक -किरोड़ीमल कॉलेज,दिल्ली विश्वविद्यालय
रचनाएं- सेतु, लेखनी, साहित्यकुञ्ज, साहित्यसुधा, सहित्यनामा, साहित्यमंजरी, स्वर्गविभा, अनहद कृति, हमरंग, जय विजय, हस्ताक्षर, रचनाकार, पञ्चदूत, आंच आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
सम्प्रति- पी-एच.डी.(शोधरत) आय. सी.टी. मुम्बई,महाराष्ट्र।