केरल में देखो ऐसा अवसर भी आया है,
शिव के पुत्र गजराज ने भी स्वयं को निर्बल पाया है।
माँ की ममता, भूख की ज्वाला सबकुछ उसके अंदर थी,
मानव से भोजन की आशा, उसके अंतर मन थी।
देख कर कुछ युवक भोजन के साथ आये है,
क्या पता था उस गज गामिनी को मौत साथ लाये है।
स्वादिष्ट फल समझकर उसने जैसे ही मुंह मे दबाया होगा,
आभार ईश्वर का करने सूंड को थोड़ा हिलाया होगा।
फट पड़ा मुंह में स्वाद अंदर भी ना ले पायी थी।
जबड़े टूट गए 3 दिन कुछ नही खा पाई थी।
निष्तेज होकर उसने नदी में मुहं चलाया था,
जलन, रक्त, घाव धोकर मन को समझाया था।
नही था पता भूख का ऐसा दान मिलेगा,
थोड़े भोजन के लालच में मौत का सामान मिलेगा।
स्वयं तो हंसकर मर जाती,
अपने आँचल पर रोइ थी।
क्योंकि एक छोटी सी जिंदगी,
उसके पेट में सोई थी।।
अंतिम स्वास तक भी प्रभु से,
यही आशीष लिया होगा।
चाहे म्रत्यु मुझे आ जाये,
संतान का रक्षण किया होगा।।
क्या अब प्रकृति कोई अभिशाप नही देगी,
क्या ये पैशाचिक हरकत तुमको पाप नही देगी ?
कानून तुम्हें न पकड़े, वैसे भी वो अंधा है,
हो सकता है तुम धनाढ्य हो, बड़ा तुम्हारा धंधा है।
पर जीवों की हाय नही रुकने वाली,
अब जो भीषण त्रासदी होगी,
क्षमा नही करने वाली।।
मंगलेश सोनी
मनावर(मध्यप्रदेश)