उस पैदा हुई बच्ची को अपाहिज देख डॉक्टर की भी आंखों में आंसू आ गए। उनकी आंखों में आंसू आना लाजमी था,क्योंकि बच्चे को जन्म देने वाली उसकी मां जिंदा नहीं थी, और जो अभी-अभी इस धरती पर जन्मी है वह अपाहिज है। ऑपरेशन थिएटर के बाहर खड़ा उसका पति इन आशाओं के साथ खड़ा है कि, उसकी पत्नी बच जाएगी।
यही सोचकर आंखें भर आई थी।
क्या बताएंगे हम उसके पति को कि, नहीं बचा सके हम आपकी पत्नी को..और आपकी जो बेटी हुई है वह अपाहिज पैदा हुई है।
आखिर बताता नहीं तो करता क्या वो!डॉक्टर और थोड़ी हिम्मत जुटाकर उसने ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा खोला ।
दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि, राकेश उसी दरवाजे की तरफ टकटकी लगाए देख लगा था।
(नम आंखों से)-राकेश सुनो मेरी बात, तुम ढेर सारी हिम्मत जुटा लो, फिर मैं बताता हूं क्या हुआ है!
डॉक्टर की इस तरह की बातें सुन राकेश के पैर लड़खड़ाने लगे थे।
-डॉक्टर सा. ,मैं कुछ समझा नहीं!आप कहना क्या चाहते हैं।
-रमेश हम मजबूर थे क्योंकि,तुम्हारी पत्नी ने कहा था कि मेरे जीवन से महत्वपूर्ण मेरे पति के सपने हैं।
मैं आपकी पत्नी को नहीं बचा सका और आपके घर में एक बेटी ने जन्म लिया है,परंतु वह अपाहिज है। न बोल सकती है, न ही उसका एक हाथ काम करता है।
इतना कहकर वो डॉक्टर आगे बढ़ गया । राकेश अचानक स्तब्ध होकर गिर पड़ा मानो जैसे उसकी आत्मा ने उसके शरीर का त्याग कर दिया हो ।
आज राकेश ने दुनिया में सब कुछ खो दिया था..अपने सारे सपने…।
एक तरफ अपनी अर्धांगिनी तो दूसरी तरफ अपने सपनों को उड़ान देने वाली अपनी बेटी भूमि को पड़ा देख अचेत राकेश को संभालने वाला कोई नहीं था।
कोई उसे यह कह दे-तुम परेशान न हो, तुम हिम्मत जुटाओ ईश्वर जो चाहता है वही होता है ।
अचेत पड़े राकेश की आंखों से गिर रहे आंसू बार-बार चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि प्रभु आज आप मुझे भी अपने पास बुला लो। जब आपने सब कुछ छीन ही लिया है तो हमें भी अपने पास ही बुला लो।
अचानक राकेश की कानों में आवाज सुनाई देने लगी। एक बच्चे की किलकारियां..तभी नर्स ने आकर कहा कि,आप अपने बच्चे को देख सकते हैं।
राकेश ने हल्के से अपने हाथों से अपने आंसूओं को पोंछा और कमरे में जाकर देखा कि,वो एक छोटी-सी प्यारी-सी बच्ची है,जिसने अभी-अभी जन्म लिया है। उसके पास जाकर देखा तो उस बच्चे की प्यारी मुस्कान देखकर उसे अपने गले से लगा दिया।
अब राकेश के चेहरे पर आ गई एक प्यारी-सी मुस्कान,परंतु उसकी वह मुस्कान बस कुछ पल की थी। डॉक्टर ने आकर कहा-‘कि रमेश तुम अपनी पत्नी की बॉडी ले जा सकते हो।’
डॉक्टर के कहते ही फिर से राकेश की आंखों में आंसू आ गए, उसके हाथ-पैर कांपने लगे।
किसी तरह अपने-आपको संभालकर अपनी पत्नी के पास गया और उसका मृत शरीर देखकर उसके पैरों को पकड़कर बिलखते हुए कहा कि,मुझे माफ कर दो मैं तुम्हें नहीं बचा सका और तुमने जो तुमने बलिदान दिया है वह अब कभी पूरा नहीं हो सकता है।
तुम तो चली गई,पर मुझे यहां अकेला छोड़कर..अब मुझे और उस बच्ची को कौन देखेगा, कौन हमें संभालेगा? हम कैसे जी पाएंगे तुम्हारे बिन! शायद तुम्हें याद नहीं होगा कि, तुम्हारे चेहरे को देखने के लिए मैं ऑफिस से जल्दी आ जाता था।
तुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत है और मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं ।
यह सब कुछ तुम नहीं समझ पाई,
आज तुम मुझे छोड़कर जा रही हो।
तुमने इतना भी नहीं सोचा कि,मेरा ही ना,सही इस बच्ची को अब मां का……….. फिर क्रियाकर्म करके वह अपने बच्ची के साथ रहने लगा।
परिचय : विक्रांतमणि त्रिपाठी एक लेखक के रुप में सामाजिक समस्याओं को उकेरते हैं,ताकि आमजन उस पर सोचेंं। उत्तरप्रदेश के जिला-सिद्धार्थनगर में ग्राम मधुकरपुर में रहते हैं। आपने एम.ए.(भूगोल)किया है और वर्तमान में एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई जारी है। आप एक एनजीओ में कार्यरत हैं। रुचि समाजसेवा,कविता लेखन और विशेष रुप से कहानी लिखने में है।
अत्यंत दर्द से भरी हुई कथा, जिसे पढ़कर स्वतः ही आँखें अश्रुपूरित हो उठीं ।