शर्म न आती तुमको, सेना पर पत्थर बरसाते हो।
जिस थाली में खाते छेद,उस में ही कर जाते हो।।
भारत माँ के आँचल में,दुःख जब-जब भी सोता है।
जब-जब जुल्म लाल पे होता,माँ का भी दिल रोता है।।
कहते हो कश्मीर हमारा,फिर कैसी लाचारी है।
मैं सैनिक हूँ भारत माँ का,मुझमें तो खुद्दारी है।।
सोई है सरकार यहाँ तो,दिल्ली के गलियारों में।
होते हैं सैनिक शहीद पर,दीपक के उजियारों में।।
जब जागेगा लाल यहां तो,माँ पत्थर बरसाएगी।
पत्थर से कैसे बचना है,ये भी तुझे सिखाएगी।
(तांटक छन्द)
#दिनेश कुमार प्रजापत
परिचय : दिनेश कुमार प्रजापत, दौसा जिले(राजस्थान)के सिकन्दरा में रहते हैं।१९९५ में आपका जन्म हुआ है और बीएससी की शिक्षा प्राप्त की है।अध्यापक का कार्य करते हुए समाज में मंच संचालन भी करते हैं।कविताएं रचना,हास्य लिखना और समाजसेवा करने में आपकी विशेष रुचि है। आप कई सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़े हुए हैं।