कभी उन्होंने देखा ही नही,
मुझे उस नजर से।
जिसकी मैं उनसे,
चाहत रखती हूँ।
हूँ खूबसूरत तो क्या,
जब उनकी निगाहें।
मुझे पर ठहरती नहीं।
तो क्या जरूरत ऐसे,
रूप और यौवन का ?
चंदन सा सुगन्धित मेरा वदन।
उनको पास न लपता है।
और न ही उनके दिलमें,
प्यार को जगा पता है।
जबकि मेरी खुशबू से,
बहुत भवरे मड़ाते रहते है।
पर क्या करे ये फूल जो,
किसी की अमानात है।।
न तन सुंदर चाहिए,
न वस्त्र सुंदर चाहिए।
हमे तो उनका वो,
प्यार भरा एहसास चाहिए।
उनके छू भर लेने से,
दिलमें तरंगे दौड़ जाएगी।
और फिर मैं उनमें ही,
हमेशा के लिए शमा जाऊंगी।।
#संजय जैन
परिचय : संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं पर रहने वाले बीना (मध्यप्रदेश) के ही हैं। करीब 24 वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं।ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी प्रतिभा से कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखते हैं। मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है,जबकि लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।00