आजुहि मोहे पिया मिलेंगे…
बहुत दिनन की अँखियां प्यासी, निशदिन रहती रही उदासी।
आज सुफल पीड़ा मन हाँसी,
हरि पाई वृन्दावन वासी।
मिलन उछाह भरा मन भोरे,अबहि प्रीत के सुमन खिलेंगे…
आजुहि मोहे पिया मिलेंगे….।
हरि जू मौसे कहे सुपन में,
रीते घट ही रहे जुबन में।
भरम पाल बैठे सब मन में,
मैं तो प्रीत भरे हिय वन में।
मौसों मेल सहज नर सुन ले,
अाज नहीं तू कल ही मिलेंगे…
आजुहि मोहे पिया मिलेंगे…।
मैं अति मन महँ मुदित आज को, समझिअ हरि के मिलन राज को।
देह छाँडि गहँ हियहिं काज को, भरम डालि रखि माय बाज को।
करि श्रॄंगार दुलहिन सौं बैठि, जनम-जनम के नीर भरेंगे…
आजुहि मोहे पिया मिलेंगे…।
मिलन बिछोह भरम जग पाया,
सुख लालस बस दुख अति पाया।
तड़प-तड़प निज मान भुलाया, आपुहि हरिअहि घरनी बनाया।
बनिअ सुहागन मन मदमाए,
हरि कर सिर सिन्दूर सजेंगे…
आजुहि मोहे पिया मिलेंगे…।
#भगत ‘सहिष्णु’
परिचय : भगत टेलर ‘सहिष्णु’ प्रतापनगर (राजस्थान)में रहते हैं और प्रतियोगी शिक्षण कथा प्रवचन का व्यवसाय करते हैं। आप हर प्रकार के लेखन में सक्रिय हैं।