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अरे ओ जालिम हरजाई,
तू क्या जाने पीर पराई।
इस कदर तेरी याद में पूरी रात,
आंखों ही आंखों में बिताई।
प्रेम की बरसात में भीगे थे हम,
देख फिर से वो प्रेम बदरी छाई।
अरे ओ जालिम हरजाई,
तू क्या जाने पीर पराई।
जिस रस्ते से तू गुजरी थी कल,
उसी राह हमने फिर पलकें बिछाई।
हर समय तेरे ही ख्वाब देखता,
तेरी यादों ने मेरी नींद चुराई।
जी रहा हूँ तेरी यादों के सहारे,
क्यों आज फिर तेरी याद आई।
अरे ओ जालिम हरजाई,
तू क्या जाने पीर पराई।
#गणेश मादुलकर
परिचय: गणेश मादुलकर का साहित्यिक उपनाम-मुसाफ़िर है। इनकी जन्मतिथि -५ सितम्बर १९९७ तथा जन्म स्थान-गांव ग्राम बम्हनगावं(मध्यप्रदेश)है। शहर हरदा में बसे हुए गणेश मादुलकर अभी विद्यार्थी काल में हैं। यह किसी विशेष विधा की अपेक्षा सब लिखते हैं। आपके दो प्रकाशन आ चुके हैं,जिसमें एक साझा संग्रह है। इनके लेखन का उद्देश्य सामाजिक रूढ़िवादिता पर कटाक्ष प्रहार के साथ ही प्रकृति चित्रण,देश-काल, वातावरण एवं अन्य विषय पर भी लेखन जारी है।
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