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आई वैशाखी बढ़ी त्रास
तपती धूप जली घास
जल स्त्रोत होता दूर
पौधे-प्राणी होते मजबूर
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सूखे नदी-नाले कुएँ-तालाब
बाग-बगीचे की जड़े सूखे
धरती के अंदर भी
नलकूपो के लेयर छूटे।
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तप रही है धरती
उगल रहा अम्बर आग
पशु-पक्षी जीव-जन्तु और
मानव के जीवन में जल है खास।
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नदिया कहे वैशाख से
प्रचंड रूप सम्भाल
बूँद-बूँद कोई पिए कैसे
जब पूरी न हो पाये छांक।
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मटका कहे वैशाख को
चाहे जितना भी दो ताप
जल मै ठंढा करू
मुझ पर असर न तेरा खास।
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कोयल की बोली
और आम का बाग
साथियो संग झूला और
टिकोले संग सत्तू का स्वाद
वैशाखी पर और बढाए त्रास।
“आशुतोष”
नाम। – आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम – आशुतोष
जन्मतिथि – 30/101973
वर्तमान पता – 113/77बी
शास्त्रीनगर
पटना 23 बिहार
कार्यक्षेत्र – जाॅब
शिक्षा – ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन – नगण्य
सम्मान। – नगण्य
अन्य उलब्धि – कभ्प्यूटर आपरेटर
टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य – सामाजिक जागृति