…तो पर्वतों से होकर गुजरेगी

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manish
जिंदगी है ये तो टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होकर गुजरेगी,
सुख और दुख क्या,यह तो सबमें होकर गुजरेगी।

चलना भी आखिर कहाँ तक लिखा इस सफर में,
जहाँ रुके कदम,वहीं नए रास्तों से होकर गुजरेगी।

निराशा में ही आशा की लौ जलती है महसूस करो,
है कुछ अगर उम्मीद,तो पर्वतों से होकर गुजरेगी।

न समझो नादान खुद को,कि अकेले रह जाओगे,
किसी से दूर तो किसी के करीब से होकर गुजरेगी।

बनने दो,थोड़ा सँवरने दो,अपने इन अरमानों को,
देखना फिर तुम कैसे हकीकत से होकर गुजरेगी।

वह जो देखकर,तुम्हें हँसते रहते सत्य की राह में,
उन्हीं की झूठी हंसी में संघर्षों से होकर गुजरेगी।

वह लम्हा भी प्यारा,सिर्फ एक दिन के लिए रहेगा,
जब जिंदगी हँसते-हँसते मौत से होकर गुजरेगी।

                                                                  #मनीष कुमार ‘मुसाफिर’

परिचय : युवा कवि और लेखक के रुप में मनीष कुमार ‘मुसाफिर’ मध्यप्रदेश के महेश्वर (ईटावदी,जिला खरगोन) में बसते हैं।आप खास तौर से ग़ज़ल की रचना करते हैं।

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