*दृश्य*
( कचड़े बीनने वाले चार किशोर दौड़ते हुए मंच पर प्रवेश करते हैं और जमीन पर धम्म से बैठ जाते हैं )
पहला किशोर(हाँफते हुए )- अबे छोटुआ,जल्दी निकाल पर्स।छोटू – पर्स हमरा पास नहीं है रे भिखुआ। राजु के पास है।राजु ( उत्साहित होते हुए )- आज हमारा बालदिवस बढ़िया से मनेगा रे। कलुआ के होटल में मुर्गा-भात खाने का जुगाड़ हो गया।चौथा किशोर ( सिर खुजलाते हुए ) मगर,मंगरा के दुकान का उधारी भी तो चुकता करना है।वह बोल रहा था कि अगर कल तक हमसब उसका उधार नहीं चुकाए तो अब से वह हमें डेण्ड्राइट देना बंद कर देगा।राजु- मंगरा डेण्ड्राइट देना बंद करे तो कर दे मगर आज हम मुर्गा-भात ख़ाकर ही रहेंगे।भिखुआ( चिल्लाते हुए ) अबे चुप ! पहले पैसे तो गिन ।राजु ( पर्स से निकाले गए रुपए गिनते हुए ) एक सौ,दो सौ……पूरे साढ़े सात सौ रुपए।(चारो किशोर खुशी से एक साथ चिल्ला उठते हैं)पाकिटमारी जिंदाबाद !छोटू- चल,अब जल्दी हिसाब लगा आज के खर्चा का।मेघुआ-हम हिसाब लगाते हैं।सौ-सौ रुपया हम अपने घर के लिए रखेंगे।हो गया चार सौ….बाकी बचे साढ़े तीन सौ रुपए। सत्तर रुपए थाली मुर्गा-भात के हिसाब से चार थाली का हिसाब लगाओ अब।राजु- दो सौ अस्सी रुपया।बाकी बचा 70 रुपया।मेघुआ- बाकी 70 रुपया मंगरा के दुकान का उधारी चुका देंगे हम।भिखुआ ( उत्तेजित होकर ) 70 रुपया चुकता करने में गवाँ देंगे तो डेण्ड्राइट खरीदेंगे कैसे ?छोटू- एक काम करते हैं। आज मंगरा के दुकान में 30 रुपया चुकता करते हैं,बाकी बचा 40रुपया।दारू भट्टी में जुगलवा से हमरा यारी है। वह हम सबको 40 रुपए में चार गिलास दारू पिला देगा।राजु-बात तो तू सही कहता है छोटू मगर दारूभट्ठी तो शाम को खुलेगा न ! अरे यार, नशा के लिए मन अभी उतावला है।निकाल न, डेण्ड्राइट वाली ट्यूब !जो थोड़ा-मोड़ा बचा है,सूंघ तो लें हमसब।कुछ तो नशा चढ़े !भिखुआ- हम तीनों की भी तो सोच! बिना डेण्ड्राइट सूंघे हम चैन से रह सकते हैं क्या ?छोटुआ- तब एक काम करो।आज मंगरा के दुकान में चुकता करने की जरूरत नहीं।हम अभी जाकर हशमत के दुकान से एक डेण्ड्राइट का ट्यूब खरीद लाते हैं।फिर घण्टे-दो घण्टे हम इसे सूंघकर कहीं पड़े रहेंगे। उसके बाद कलुआ के होटल में मुर्गा-भात खाने चलेंगे। शाम होते ही दारू भट्ठी में जाकर एक-एक गिलास गटक कर सीधे अपने-अपने घर चले जाएंगे।मेघुआ- ठीक है।अब देर न कर।चल जल्दी।छोटू-चल रे भिखुआ।राजु, तू भी चल।( चारो किशोर मंच से प्रस्थान कर जाते हैं।)
*पर्दा गिरता है*
【नेपथ्य से एक आवाज़ आती है- आजाद भारत के भावी कर्णधार कहे जाने वाले बच्चे आज भी पाकिटमारी की पेशा अपनाकर अपना दिन गुजारा करते हैं।नशे के शिकार हुए ऐसे बच्चे सिर्फ चार ही नहीं,बल्कि हजारों-लाखों की संख्या में हैं जिनका हिसाब न तो सरकार के पास है और न ही किसी स्कूल के रजिस्टर में इनका नाम दर्ज है।आज ये सामान्य पाकिटमार हैं और नशे के लिए डेण्ड्राइट सूंघते हैं लेकिन कल होकर ये चरस, अफीम,गांजा और शराब के नशे में धुत्त होकर या तो अपनी जान असमय गंवा बैठेंगे या बड़ी से बड़ी गुनाह करके जेल की सलाखों में कैद रहेंगे।इसलिए साथियों, जागिए और प्रतिदिन निकट के रेलवे स्टेशन,बस पड़ाव,पर्यटन स्थलों में अपनी नज़र घुमाइए।कचड़े बीनने वाले ऐसे बच्चे सहज ही दीख जाएंगे आपको। बस !एक ही काम करना है आपको।वह है-ऐसे बच्चों को इकट्ठा करके उनके मार्गदर्शक बनिए। साक्षर न बना सकें तो कोई बात नहीं लेकिन आपके द्वारा दी गई नैतिक शिक्षा से ये नौनिहाल अंधेरे कूप में डूबने से बच सकते हैं।इन्हें प्यार दीजिए और इनके जीवन को उजागर कीजिए। ये हजारों या लाखों में हैं तो आप अरबों में।*क्या ले सकते हैं आज आप नया संकल्प और मना सकते हैं सही मायने में बालदिवस ?*】
डा०(मानद)ममता बनर्जी “मंजरी”✍