उत्थान और पतन का है मिश्रण जीवन
सूखा हुआ सुख पाकर क्यों हो मगन ?
दुनिया का दुःख देख सूख जाता मन
आज यौवन , बुढ़ापा , बचा न बचपन
संतोष ही है सुख का सर्वोत्तम रतन
जलाकर ज्ञान – दीप ,जला दो जलन
मत कर, ईर्ष्या-द्वेष से होता है पतन
छोटों से प्रेम करो , बड़ों को नमन
डूब जाएगी जिन्दगी ज्यों चंचल होगा मन
संस्कार के सुमन से सजा दो सदन
चन्दा मामा तारों संग आएँगे आंगन
जलाओ लघु दीप, मिटे तिमिर- सघन
झुके कर्मठ के आगे गिरि ,गंगा ,गगन
लोभ ,मोह ,माया मुक्त निर्मल नयन
धन आए – जाए ज्यों सरिता – पवन
‘सावन’! मन है संन्यासी तो क्या होगा धन
#सुनील चौरसिया ‘सावन’
कुशीनगर(उत्तर प्रदेश)20