#भाषा सारथी से साहित्यकारों को किया सम्मानित
भोपाल । हिंदी भवन के नरेश मेहता कक्ष में डॉ अर्जुनदास खत्री द्वारा रचित, रजत प्रकाशन द्वारा प्रकाशित बाल काव्य पुस्तक “अनय हमारा” के लोकार्पण के साथ ही “बाल साहित्य, दशा, दिशा एवं संभावनाएं” विषय पर कई विद्वान बाल साहित्यकारों ने अपने विचार व्यक्त किये।
कॉर्यक्रम की अध्यक्षता लक्ष्मीनारायण पयोधि ने की, मुख्य अतिथि डा हिसामुद्दीन फारुखी, विशेष अतिथि प्रो. डा परशुराम शक्ला, अहद प्रकाश एवं डॉ ए डी खत्री भी मंचासीन रहे। संचालन करते हुए अनुपमा अनुश्री ने कॉर्यक्रम का विवरण दिया एवं कहा कि बालसाहित्य का सृजन बड़ी जिम्मेदारी का कार्य है। आज के दौर के बच्चों की आवश्यकताओं, जिज्ञासाओं ,मानसिक स्तर पर खरा उतरने के लिए तर्क सम्मतता , यथार्थता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते हुए बाल साहित्य का सृजन किया जाए तो वह बाल उपयोगी,सार्थक होगा और अधिकाधिक बच्चों को बाल साहित्य से जोड़ सकेगा। शायद तब वह अच्छे साहित्य को अपना मित्र मानकर उसके हाथ में हाथ डालकर चल सकेंगे।
अच्छे साहित्य रूपी मशाल अगर उनको बचपन से ही थमा दी जाए तो वह स्वयं को भी रोशन करेंगे और समाज को भी रोशन करेंगे। साहित्य कुम्हार की तरह उनकी जिंदगी में , अच्छे संस्कार, सभ्यता ,जीवन मूल्यों को गढ़ सकता है।
सरस्वती पूजा उपरान्त बाल-काव्य-कृति “अनय हमारा” का लोकार्पण किया गया।फराह खान ने पुस्तक पर समीक्षात्मक टिप्पणी की।
इसी बीच मातृभाषा उन्नयन संस्थान द्वारा मंचस्थ हिंदी उर्दू के वरिष्ठ सृजनकर्ताओं को भाषा सारथी सम्मान प्रदान किया। संयोजन अहद प्रकाश का रहा।
बाल कविताओं की प्रस्तुति एवम संग्रह पर अपने विचार व्यक्त किये, डा हसरत जहाँ, सुप्रीत खत्री, डा आबिद अम्बर, ने और सभी का मूल स्वर था कि आधुनिक युग के बच्चों की समस्याएं अलग हैं अतः हमें सोच समझकर बाल साहित्य रचना होगा। डॉ अर्पण जैन अविचल का यह मानना था कि बाल साहित्य में शब्दावली सरल हो एवं उसमे लोरी जैसा लालित्य हो।
बाल साहित्य विशेषज्ञ प्रो परशुराम शुक्ला ने बताया कि बाल साहित्य को उम्र के अनुसार तीन वर्गों में बांटा जाना चाहिए और इसमें मनोरंजन तत्व आवश्यक है। नैतिक शिक्षा सदैव पंचतंत्र की तरह अप्रत्यक्ष होना चाहिए। बच्चों का शारीरिक, मानसिक, एवम नैतिक विकास तीनो आवश्यक है।अंत में आभार प्रदर्शन अर्पण जैन अविचल ने किया।