वो दरवजे़ की मुलाकात

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आज की पीढ़ी ना समझेगी वो प्यारे जज्बात,,
कैफे से भी प्यारी थी वो दरवजे की मुलाकात,,
कई दफा उनकी गलियों में जाना होता था,,
बड़ी मुश्किल से फिर उनका नजराना़ होता था,,
आंख से मिलती आंख तो हो जाती थी दिल की बात,,
आज की पीढ़ी ना समझेगी वो प्यारे जज्बात,,
कैफे से भी प्यारी थी वो दरवजे की मुलाकात,,
ना कोई ख्वाहिश ना फरमाइश तब कोई उपहार नहीं था,,
इश्क का मतलब केवल मन था तब तन आधार नहीं था,,
मर्यादा का ना था उल्लंघन चाहे दिन थी या फिर रात,,
आज की पीढ़ी ना समझेगी वो प्यारे जज्बात,,
कैफे से भी प्यारी थी वो दरवजे़ की मुलाकात,,
तब झूठी प्रेम कहानी ना थी ना थे झूठे लोग,,
बरसों राहे तकते थे तब मिलते थे संजोग,,
अपने एहसासों से सनम पन्ना भर देती थी,,
दरवजे पर मेरे हाथ में वो खत धर देती थी,,
जैसे जन्नत मिल जाती जब छू लेती वो हाथ,,
आज की पीढ़ी क्या समझेगी वो प्यारे जज्बात,,
कैफे से भी प्यारी थी वो दरवजे की मुलाकात,,

#सचिन राणा “हीरो”

matruadmin

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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