हमारे देश के महत्वपूर्ण हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड के सीमान्त जनपद का नाम पिथौरागढ़ है जिसको पूरा देश छोटा कश्मीर के नाम से जानता है।इसका पुराना नाम सोर घाटी है।सोर का अर्थ होता है सरोवर। यहां मान्यता है कि पहले यहां सात सरोवर थे जो धीरे धीरे सूख गये।।यहां की भूमि पठारी हो गयी और पठारी भूमि के कारण पिथौरा पिथौरा से बन गया कालान्तर में पिथौरागढ़। कुल लोग राय पिथौरा नाम के यहां के वीर और साहसी राजा के नाम पर पिथौरागढ़ होने की कहानी भी बतलाते हैं।
एक फूलों की टोकरी की तरह हरियाली से घिरा और बसा यह नगर समुद्र तल से 1645 मीटर ऊंचाई पर बसा है। इसका क्षेत्रफल 7090 वर्ग किमी है। आजकल लगभग आबादी 60000 होगी।मकानों की बसावट रहन सहन और खान पान किसी महानगरीय शान शौकत से कम नहीं हैं।नगर की तरह यहां के निवासियों के व्यवहार में भी खूबसूरती दिखती है।लगभग पन्द्रह साल इस नगर और जनपद के लोगों के बीच मैं रहा हूं। एक शिक्षक और साहित्यकार के रूप में समय बिताया है।
यहां की वस्तुओं की बात करें तो जूते ऊन के वस्त्र किरंगाल से बनी वस्तुएं मडुवे की नमकीन डीडीहाट का खेंचुआ एक प्रकार की मिठाई बहुत प्रसिद्ध हैं।नगर में शिवालय उल्का मन्दिर व राय की गुफा दर्शनीय है।पूरा पिथौरागढ़ जनपद प्रकृति के अनोखे भण्डारों से समृद्ध है। प्रकृति ने इसे अनके झरने शानदार ग्लेशियर दुर्लभ वनस्पतियां शोर झुलसा देने वाली नदियां सुरम्य घाटियां ऊंचे-ऊंचे बर्फ से ढके पहाड़ सूरज की किरणों से सोने सा चमकने वाली चोटियां सौंपी हैं।जिनको देखना मानों धरती पर किसी स्वर्ग को देखने से कम नहीं है।
धार्मिक और पर्यटक स्थलों की बात करें तो कैलाश पर्वत ऊँ पर्वत हाटकालिका कामाख्या मन्दिर कैलाशमानसरोवर थल केदार चौकीटी के चायबागान और वहां से उच्च हिमालय का मनोरम दृश्य नारायण आश्रम पातालभुवनेश्वर रामेश्वर जैसी जगहों पर पर्यटक श्रृद्धालु स्वंय खिंचे चले आते हैं ।भौगोलिक दृष्टि से यह जनपद पूर्व में नेपाल उत्तर में तिब्बत दक्षिण में अल्मोड़ा चम्पावत और पश्चिम में बागेश्वर की सीमाओं को स्पर्श करता है।यहां काली गोरी सरयू रामगंगा जैसी नदियों का कलकल गूंजता है।
ऐसे सुरम्य पर्यटक स्थल तक पहुंचने के लिए काठगोदाम और टनकपुर तक रेलमार्ग हैं जहां से सड़क की दूरी क्रमशः210 और 150 किलोमीटर है।पिथौरागढ़ मुख्यालय का नैनीसैनी अब हवाई सेवा से भी जुड़ गया है।यहां से पन्तनगर और देहरादून के लिए नियमित हवाई सेवा उपलब्ध है।यहां के लिए बरेली दिल्ली लखनऊ व देहरादून से सीधी बसें भी मिल जाती हैं।यहां पर काठगोदाम हल्द्वानी होकर या टनकपुर चम्पावत होकर भी पहुंचा जा सकता है।यहां की यात्रा के लिए मार्च अप्रैल और सितम्बर अक्टूबर का समय सबसे अच्छा माना जाता है।यहां पर रुकने की कोई समस्या नहीं है हर तहसील ब्लाक मुख्यालय तक पर सरकारी गेस्ट हाउस धर्मशालायें और अच्छे होटल पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं।आवश्यकतानुसार निजी वाहन भी आसानी से मिल जाते हैं।
चूंकि यह पूर्ण पहाड़ी जिला है।सड़कें पहाड़ों के किनारे से गुजरती हैं।कई बार रास्तों में अवरोध भी आजाते हैं।मौसम भी अचानक बदल जाता है।अत आने वाले पर्यटकों को अपने उल्टी रोकने की दवायें कुछ खाने पीने का सामान नीबू ड्राई फ्रूट आदि और मौसम के अनुसार गरम कपड़ें लेकर अवश्य चलना चाहिए।
#शशांक मिश्र
परिचय:शशांक मिश्र का साहित्यिक नाम `भारती` और जन्मतिथि १४ मई १९७३ है। इनका जन्मस्थान मुरछा-शहर शाहजहांपुर(उत्तरप्रदेश) है। वर्तमान में बड़ागांव के हिन्दी सदन (शाहजहांपुर)में रहते हैं। भारती की शिक्ष-एम.ए. (हिन्दी,संस्कृत व भूगोल) सहित विद्यावाचस्पति-द्वय,विद्यासागर,बी.एड.एवं सी.आई.जी. भी है। आप कार्यक्षेत्र के तौर पर संस्कृत राजकीय महाविद्यालय (उत्तराखण्ड) में प्रवक्ता हैं। सामाजिक क्षेत्र-में पर्यावरण,पल्स पोलियो उन्मूलन के लिए कार्य करने के अलावा हिन्दी में सर्वाधिक अंक लाने वाले छात्र-छात्राओं को नकद सहित अन्य सम्मान भी दिया है। १९९१ से लगभग सभी विधाओं में लिखना जारी है। श्री मिश्र की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। इसमें उल्लेखनीय नाम-हम बच्चे(बाल गीत संग्रह २००१),पर्यावरण की कविताएं(२००४),बिना बिचारे का फल (२००६),मुखिया का चुनाव(बालकथा संग्रह-२०१०) और माध्यमिक शिक्षा और मैं(निबन्ध २०१५) आदि हैं। आपके खाते में संपादित कृतियाँ भी हैं,जिसमें बाल साहित्यांक,काव्य संकलन,कविता संचयन-२००७ और अभा कविता संचयन २०१० आदि हैं। सम्मान के रूप में आपको करीब ३० संस्थाओं ने सम्मानित किया है तो नई दिल्ली में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ वर्ग निबन्ध प्रतियोगिता में तृतीय पुरस्कार-१९९६ भी मिला है। ऐसे ही हरियाणा द्वारा आयोजित तीसरी अ.भा.हाइकु प्रतियोगिता २००३ में प्रथम स्थान,लघुकथा प्रतियोगिता २००८ में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुति सम्मान, अ.भा.लघुकथा प्रति.में सराहनीय पुरस्कार के साथ ही विद्यालयी शिक्षा विभाग(उत्तराखण्ड)द्वारा दीनदयाल शैक्षिक उत्कृष्टता पुरस्कार-२०१० और अ.भा.लघुकथा प्रतियोगिता २०११ में सांत्वना पुरस्कार भी दिया गया है। आप ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं। आप अपनी उपलब्धि पुस्तकालयों व जरूरतमन्दों को उपयोगी पुस्तकें निःशुल्क उपलब्ध करानाही मानते हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-समाज तथा देशहित में कुछ करना है।