एक समय था जब साहित्यकारों का सम्मान अतुलनीय था। उनकी रचनाएं व किताबें छापने के लिए प्रकाशकों की भीड़ लगी रहती थी। बदले में उन्हें मानदेय और लाभांश भी मिलता था, जिससे उनका जीवनयापन आसानी से चल जाता था। वह अधिक से- अधिक लेखन में ही ध्यान देते थे ।
बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि, आज समय विपरीत हो चुका है । अब साहित्यकारों को अपनी रचनाएं छपवाने के लिए पत्र-पत्रिकाओं के आदरणीय संपादक महोदय को पैसा देना पड़ता है। किताबें छपवाने के लिए बीस से चालीस हजार रुपए तक देने पड़ते हैं। वास्तव में यह एक व्यवसाय बन चुका है। इस व्यवसाय में प्रकाशकों की एक बहुत बड़ी फौज तैयार हो चुकी है, जो महीने में दो से पांच लाख रुपए तक कमा लेती है। पहले तो लेखकों से लिया जाता है और फिर अगर किताबें बिकती हैं तब भी उन्हीं का फायदा होता है। इस भ्रष्टाचार के कारण साहित्य का स्तर गिरने लगा है। बिना जांच-पड़ताल के कोई भी किसी को भी पैसे लेकर छाप देता है। शायद आप लोगों को ज्ञात हो एक और व्यवसाय बड़ी तेजी से पनप रहा है जिसका नाम है-साँझा संग्रह।अब सुनिए-इसमें क्या होता है कि, पचास रचनाकारों से तीन से पांच रचनाएं मांगी जाती हैं और साथ में दो-तीन हजार रुपए लिए जाते हैं। आपको तीन या चार प्रतियां दी जाती हैं और सम्मानित करके एक प्रमाण- पत्र भी दिया जाता है। इसमें लिखा होता है-काव्य सागर सम्मान,रत्ना सागर सम्मान,काव्य अमृत सम्मान आदि#आदि…।
अब आप अज्ञानी तो हैं नहीं कि हिसाब न लगासकें कि किसको कितना फायदा हो रहा है। तीन हजार के हिसाब से पचास लोगों का कितना होता है और कितना वास्तव में खर्च होता है?
है न कितना मजेदार व्यवसाय, चित भी अपनी और पट भी अपनी। आप संपादक भी बन गए,आदरणीय तथा ज्ञानी बनकर सम्मान खुद ही दे दिया और धन की बरसात भी हो गई। आज यह व्यवसाय खूब फल-फूल रहा है और नये उभरते रचनाकार अपने नाम और शान के लिए इनके चंगुल में फंस कर इनके व्यवसाय को फलने-फूलने में मदद करते हैं। सम्मान पाकर खुद को दुनिया का सबसे महान व्यक्ति समझते हैं,जिससे साहित्य का पतन हो रहा है।
अगर कोई सही ढंग से सांझा संग्रह निकालना चाहता है,तो उसके दो तरीके हैं एक तो यह कि, वह बिना राशि लिए अपने बल पर निकाले और रचनाकारों को एक-दो पुस्तकें भी दे। दूसरा उपाय यह है कि, आप अपने बल पर अपनी राशि से निकालें और रचनाकार उसका सौ-दो सौ रुपए मूल्य देकर खरीद लें। इन दोनों ही स्थितियों में न तो संपादक का कोई लाभ होता है, न रचनाकार को कोई हानि होती है।
अब समय आ गया है अपने-आप को सचेत करने का। हमारी रचनाओं से ही इनके प्रकाशन व पत्र-पत्रिकाएँ चलती हैं। हम नहीं बिकेगें,धन देकर अपनी तौहीन नहीं करेगें। अगर हम सब एकजुट होकर यह प्रण कर लें कि धन देगें नहीं,अपितु लेगें,तो इस हालत को सुधारा जा सकता है। प्रत्येक रचनाकार को उसका मानदेय अवश्य मिलना चाहिए,अन्यथा आप क्यों लिख रहे हैं। स्वान्त सुखाय भी कुछ समय के लिए ही अच्छा लगता है। हम अपनी कलम में इतनी ताकत लाएं कि यह लोग स्वयं खरीदें। आज भी कुछ अच्छे समाचार-पत्र व पत्रिकाएँ रचनाकारों की रचनाएं सम्मान से लेकर प्रकाशित करती हैं और कई तो मानदेय भी देती हैं। अब फैसला आपके हाथों में है-हमें बिकना है या अपने आत्मसम्मान को बनाए रखना है। हर फैसला सरकार नहीं कर सकती है।
#निशा गुप्ता
परिचय : श्रीमती निशा गुप्ता का जन्म 1963 में उत्तर प्रदेश के रामपुर में हुआ है। आपके पति एल.पी. गुप्ता के व्यवसाय की वजह से आपका कर्म स्थान तिनसुकिया(असम) ही है,वैसे आपका मध्यप्रदेश से भी रिश्ता है। आपने एम.ए( हिन्दी,समाजशास्त्र व दर्शनशास्त्र) के साथ ही बी.एड (रूहेलखंड यूनिवर्सिटी,बरेली) भी किया है। आप वरिष्ठ अध्यापिका के रुप में विवेकानंद केन्द्र विद्यालय (लाईपुली, तिनसुकिया) में कार्यरत होकर शिक्षण कार्य में 30 वर्ष से हैं। लेखन का आपको लगभग 30 वर्ष का अनुभव सभी विधाओं में है। आपके 6 काव्य संग्रह(भाव गुल्म,शब्दों का आईना,आगाज,जुनून आदि) के साथ ही 14 पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। काव्य संग्रह ‘मुक्त हृदय’ का संपादन भी किया है। 2 बाल उपन्यास (जादूगरनी हलकारा और जादुई शीश महल ),1 शिशु गीत,कहानी संग्रह ‘पगली’,दो सांझा काव्य संग्रह(‘काव्य अमृत’,’पुष्प गंधा’) भी आपके नाम हैं। 1992 से विवेकानंद केन्द्र (कन्याकुमारी) से समाजसेवा के काम में भी जुड़ी हैं। मानव संसाधन मंत्रालय की ओर से आपको शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण-पत्र से सम्मानित किया गया था। आप नारायणी साहित्य अकादमी की राष्ट्रीय सचिव, आगमन साहित्यिक व सांस्कृतिक संस्था की असम प्रभारी और राष्ट्रीय स्तर के एनजीओ की असम राज्य की चेयरमैन भी हैं। रामपुर,डिब्रुगढ़ तथा दिल्ली आकाशवाणी से आपके कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। देशभर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं, लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं।आपको वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव(इंडोनेशिया और मलेशिया) में ‘साहित्य वैभव अवार्ड’ और दिल्ली से ‘काव्य अमृत’ भी मिला है।