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उलझी उलझी जुल्फों को यूँ सुलझाया ना करो,
पास बुलाकर तुम अपने हाय यूँ सताया ना करो l
उम्मीद जाग उठती हैं मिलन की तेरे दीदार से,
जगते सपनो को यूँ रोज तुम रुलाया ना करो l
हैं जन्नत मेरी तेरी नजरों के समंदर के पार,
मेरी कश्ती को लाकर किनारे डगमगाया ना करो l
दौलत इश्क़ की है अनमोल दिलों के बाजार में,
मोल भाव करके तुम इसे यूँ गंवाया ना करो l
तेरे साथ को तरसा हूँ मैं सच में तू समझ,
हाथ देकर फिर “हर्ष” को यूँ पराया ना करो l
#प्रमोद कुमार “हर्ष”
सरकाघाट मंडी हिमाचल
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