हे मृतुंजय,हे महाकाल,हे विश्वनाथ शत-शत प्रणाम,
हे करुणाकर,हे डमरुधर शिव त्राहिमाम, शिव त्राहिमाम।
संकट के बादल घिरे आज,पथ पर घनघोर अँधेरा है,
जीवन साथी के प्राणों पर,चल रहा राहु का फेरा है।
माना मैं अधम निरापापी,अपराधी नाथ तुम्हारा ह्ँ,
भौतिक लिप्सा में डूब प्रभु मैं कर्म चक्र का मारा हूँ।
पर तुम तो हो अवसरदानी,हर लो दुख के बादल तमाम,
हे करुणाकर,हे डमरुधर,शिव त्राहिमाम-शिव त्राहिमाम।
यदि हो अविनाशी तो अक्षय जीवन दो जीवन साथी को,
करुणाकर हो तो करुणा कर निर्झर काया दो साथी को।
यदि दया सिंधु हो,करो दया हम दोनों के संताप हरो,
सब रोग दोष टोना-टटका,जीवन के संचित पाप हरो।
देवाधि..देव हे महादेव,गंगाधर,गौरी के ललाम,
हे करुणाकर,हे डमरुधर,शिव त्राहिमाम-शिव त्राहिमाम।।
#अनुपम कुमार सिंह ‘अनुपम आलोक’
परिचय : साहित्य सृजन व पत्रकारिता में बेहद रुचि रखने वाले अनुपम कुमार सिंह यानि ‘अनुपम आलोक’ इस धरती पर १९६१ में आए हैं। जनपद उन्नाव (उ.प्र.)के मो0 चौधराना निवासी श्री सिंह ने रेफ्रीजेशन टेक्नालाजी में डिप्लोमा की शिक्षा ली है।