तू ही सच में महान है

0 0
Read Time2 Minute, 46 Second

kirti jayaswal

वीर वो सैनिक तम को हराने,
जाते जिनके प्राण हैं;
जिस मिट्टी से मिल जाते हैं,

वह ही ‘दीप’ महान है।

दीपक तुम जलते जाना,
जगमग जग करते जाना;
जल-जल जितना मरुँ ‘पतंगा’,
जगमग उतना जग होगा।
दीपक तुम जलते जाना,
तुझमें आकर मर जाऊंगा।

भानु चमकता जगमग जग में,
तारकगण आकाश में;
प्रेम-तेरे बिन जो न जलता,
वह ही ‘दीप’ महान है।

शशक रूप; शिशु रूप लिए,
‘घन’ नभ में हैं; विस्तार में;
तड़िक-वज्र से वार किया,
इन मूकों पर तूफान ने।

अंधकार का कारण क्या ?
कुछ और नहीं तूफान है;
जगमग जग जो रोशन करता,
दीप भी एक शिकार है।
बड़े भयंकर वृक्ष गिराया,
खंभ,गेह भी है मथ डाला;
वृक्ष मथे थे; खंभ मथे थे,
गेह मथे तूफान ने।

अभी-अभी अंकुर से आया,
पौधा बन जो नम्र खड़ा है;
वृक्ष हैं टूटे; खंभ हैं टूटे,
धावित नर हैरान हैं।
खड़ा नम्र से नम्र बना दे,
वह ही बड़ा महान है।

भूत भयानक तम में होते,
वृक्ष दिवस जो ‘यार’ हैं;
गुह्यतम से जो रस ले आती,
डसती तम; क्या राज है ?

ऊँट पर नर ‘मरू’ में खोजें,
और भौंरे पुष्प के बाग में;
चीर जो गिरि से लाता ‘रस’ को,
वह ही ‘कुटज’ महान है।

सूरत पर एक मुस्कुराहट,
खिलती तभी हजार हैं;
‘कली’ भली तू खिलती प्रांतर,
तू तो बड़ी नादान है।

उड़ते शुक हैं; काक-विहग है,
ऊंचाई पर बाज हैं;
पंगु पैर ले जो उड़ जाता,
‘बगुला’ वही महान है।

जुगनू-सा तारक जगमग जग,
नजर फेरे ‘अज्ञान’ है;
विभा भानु से ले जो जगमग,
‘चंद्र’ वह बड़ा महान है ?

पंछी नभ में; वायुयान भी,
ख्वाब भी हैं आकाश में;
उच्च विचार जो कर्म में परिणित,
वह ही उच्च,महान है।

व्याल न होकर डस जाता है,
व्याघ्र न हो जो गुर्राता;
तूफानों सा जकड़-पकड़ता,
कौवे-सी जबान है।
बनकर दानव बैठा ‘मानव’,
या उसका सम्राट है ?
हे नर! तेरे रुप अनेक,
तू ही सच में महान है॥
(शब्दार्थ:शशक-खरगोश,तड़िक-आकाश बिजली,व्याल-साँप,व्याघ्र-बाघ एवं गुह्यतम-छिपा हुआ)

 कीर्ति जायसवाल
इलाहाबाद(प्रयागराज)

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

आया है जुलाई का महीना

Fri Jul 5 , 2019
आया जब जुलाई का महीना बोला सोनू मां से मां ओ मां मुझको भी पाठशाला ले चल मैं पढूंगा मैं लिखूंगा मेहनत कर आगे बढूंगा मां मुझको पाठशाला ले चल सबका बढ़ना मेरा बढ़ना सबकी प्रगति मेरी भी प्रगति मां मुझको पाठशाला ले चल सब हैं जाते मैं ही न […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।